रवि किशन भोजपुरी सिनेमा के इकलौते स्टार हैं जो संघर्ष की आग में तप कर कुंदन बने हैं। भोजपुरी सिनेमा के अपने दस साल के सफर में वो आज भी मजबूती के साथ अपने मुकाम पर कायम हैं और आज भी इनका वर्चस्व इस फिल्म जगत में बना हुआ है , हालांकि हिंदी फिल्मो की लम्बी कतारों को देखकर अक्सर उनके बारे में कहा जाता है की रवि किशन भोजपुरी को प्राथमिकता नहीं देते हैं , लेकिन रवि किशन इससे सहमत नहीं है और साफ कहते हैं की भोजपुरी माँ की हाथ का बना खाना जैसा है जिससे इंसान कभी उबता नहीं है . जहाँ तक हिंदी फिल्मो की बात है तो उनके पास बड़े बड़े बैनर की एक दर्जन से भी अधिक फिल्मे हैं . इसके अलावा वो छोटे परदे पर भी अपनी अदाकारी से दर्शको को बाँधने में सफल हुए हैं. उदय भगत ने रवि किशन से उनकी संघर्ष यात्रा, पारिवारिक और सार्वजनिक जीवन पर विस्तृत बातचीत की, प्रस्तुत है उसके कुछ अंश-
आपने हिंदी फिल्मों में भी कामयाबी पाई है और छोटे परदे पर आपका अंदाज लोगो को भा रहा है , आगे की क्या योजना है? क्या टूट रहा है भोजपुरी से नाता ?
मैं भले ही हिंदी फिल्मों या छोटे परदे पर कितनी भी कामयाबी हासिल कर लूं, लेकिन भोजपुरी फिल्मों से नाता नहीं तोड़ूंगा, क्योंकि ये वो भाषा है जिसे मेरी मां बोलती है, जिसने मुझे पहचान दी है। मैं एहसान फरामोश नहीं हूं। जब मैं दर-दर की ठोकरें खा रहा था, छोटे-छोटे रोल के लिए भटक रहा था तब मुझे किसने सहारा दिया? मैंने अभिनय के क्षेत्र में खुद को तपाया है , भूखे पेट बड़ा पाँव खा कर फिल्मी कार्यालयों के चक्कर लगाये हैं , एक वक्त तो ऐसा लगा की मैदान छोड़ कर भाग जाऊं , उस वक्त मुझे इसी भोजपुरी ने सहारा दिया . और एक बात मैं और साफ करना चाहता हूँ की मैं अभी भी भोजपुरी की सर्वाधिक फिल्मे कर रहा हूँ. फिर ये सवाल मुझसे अक्सर क्यों पुछा जाता है मेरी समझ से परे है.
हिंदी फिल्मो में आपने दमदार उपस्थिति दर्ज करायी है , यकायक इतनी फिल्मे कैसे मिली ?
फिल्म जगत में यकायक कुछ भी नहीं होता , कोई निर्माता निर्देशक एक दो फिल्मो में किसी को चांस दे सकता है लेकिन अगर किसी के पास कई फिल्मे हो तो उसके पीछे उसकी मेहनत और काबिलियत रहती है , आप सभी को पता है की मैंने कठिन परिश्रम की है . बिना किसी फिल्मी बेकग्रौंड के अगर फिल्म जगत ने मुझे स्वीकारा और इज्जत दी तो उसके पीछे कोई ना कोई कारण अवश्य होगा. वैसे मेरा मानना है की आपका काम कहीं ना कहीं दुनिया की नजर में पसंद किया जा रहा है . मैं पिछले दस साल से भोजपुरी फिल्मो में अभिनय कर रहा हूँ , इस दौरान मेरी फिल्म कब होई गवना हमार को नेशनल अवार्ड मिला . अमेरिकन कंपनी पन फिल्म्स की जरा देब दुनिया तोहरा प्यार में को कांस फिल्म फेस्टिवल में प्रदर्शित किया गया . मेरी ही फिल्मो से भोजपुरी का ओवरसीज मार्केट खुला . अब ये सारी उपलब्धियां कहीं ना कहीं नोटिस तो होती ही है
आने वाली हिंदी फिल्मो के बारे में बताइए ?
फिलहाल तो मैं इशक की शूटिंग कर रहा हूँ बनारस में , फिल्म के निर्माता शैलेन्द्र सिंह जो इसके पहले तन्नु वेड्स मन्नू का निर्माण कर चुके हैं , फिल्म के निर्देशक मनीष तिवारी हैं . विक्रम भट्ट जी की डेंजरस इश्क कर रहा हूँ जो करिश्मा कपूर की कमबेक फिल्म है. हाल ही में ह्रदय शेट्टी की चालीस चैरासी और विनोद बच्चन की जिला गाजियाबाद की शूटिंग पूरी की है . चालीस चैरासी में नसीर साहब , के.के.मेनन और अतुल कुलकर्णी के साथ तो जिला गाजियाबाद में संजय दत्त, अरसद वारसी और विवेक ओबेराय के साथ हूँ. डॉ. चंद्रप्रकाश दवेदी की मोहल्ला अस्सी जल्द ही रिलीज होने वाली है जिसमे सन्नी देओल हैं.
आने वाली भोजपुरी फिल्मे कौन कौन सी है ?
भोजपुरी फिल्मो की लम्बी कतारें हैं. हाल ही में मेरी दो फिल्मे संतान और फौलाद रिलीज हुई जिसे दर्शको ने काफी सराहा है . जल्द रिलीज होने वाली मेरी फिल्मो में देवदास का भोजपुरी वर्जन हमार देवदास, जिसके निर्देशक किरण कान्त वर्मा हैं, चाँद मेहता की मल्लयुद्ध , डॉ. विजाहत करीम की केहू हमसे जीत ना पाई , के.डी. की प्राण जाये पर वचन ना जाए . इन फिल्मो के बाद धुरंधर, कईसन पियवा के चरित्तर बा, प्रेम विद्रोही, प्रदर्शन के लिए तैयार होगी.
छोटे परदे पर भी आप काम कर रहे हैं , कैसे सामंजस स्थापित करते हैं ?
मैंने लम्बा संघर्ष किया है और वकत की कीमत मुझे पता है इसीलिए सलीके से काम करने पर भरोसा रखता हूँ . महुआ टीवी के शो नाच नचैया धूम मचैया एक अच्छा शो है और मुझे इसमें काफी मजा भी आ रहा है दृ
जौनपुर के एक गांव में गुजरा आपका बचपन, क्या यादें शेष हैं?
जौनपुर से लगभग 22 किलोमीटर दूर केराकत तहसील केगांव बिसुई में 17 जुलाई को मेरा जन्म हुआ था। मेरे पिता पंडित श्याम नारायण शुक्ला गांव के ही मंदिर के पुजारी हैं। एक मध्यमवर्गीय परिवार के आम बच्चे की तरह मेरा भी लालन-पालन हुआ। बचपन में मेरा भी अधिकतर समय मंदिर में बीतता था और एक अच्छे संस्कार की नींव वहीं से पड़ी। आज मैं कहीं रहूं, अपने आराध्य देव महादेव की पूजा केबाद ही मेरे दिन की शुरूआत होती है। मुझे याद है बचपन की एक घटना३ उस समय मैं मुश्किल से पांच साल का था। मेरे गांव के पास वाले गांव में किसी का निधन हो गया था और उनकी शव यात्रा मेरे गांव होकर ही शमशान भूमि जा रही थी। किसी की शव यात्रा देखने का वो मेरा पहला अनुभव था। मैंने अपने पिताजी से पूछा ये लोग कहां जा रहे हैं? पिताजी ने बताया कि यही जीवन का सच है, कोई कितना भी बड़ा क्यों ना हो उन्हें सब कुछ छोड़कर एक दिन जाना ही पड़ता है। वो बात आज भी मेरे जेहन में है और शायद यही वजह है की कोई भी गलत काम मेरे द्वारा जान-बूझ कर नहीं होता है। मुझे पता है कि हर गलत काम का हिसाब मुझे भगवान को देना ळें
वहां से चलकर जहां तक पहुंचे, कैसी रही यात्रा?
मैं जिस क्षेत्र में हूं वहां मुकाम हासिल करना आसान नहीं है। बचपन से ही मेरी इच्छा थी कि मैं कुछ ऐसा काम करूं जिससे पूरी दुनिया मुझे जाने। फिल्मों के प्रति लगाव था और दिल में कहीं न कहीं ये ख्वाब छुपा था कि मैं भी परदे पर जाऊं, मेरे भी पोस्टर लगे। मेरा सपना काफी बड़ा था, इसीलिए उसे साकार करने के लिए भी मेहनत करनी पड़ी। कई-कई बार एक ही ऑफिस के चक्कर लगाने पड़ते थे। छोटे-छोटे रोल भी वो ऑफर नहीं करते थे। अब आप समझ सकते हैं कि उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव के एक इंसान के लिए ये ख्वाब कितना बड़ा था। मेरे माता-पिता को जब मेरे ख्वाब की जानकारी मिली तो पहली प्रतिक्रिया यही थी कि पढ़-लिखकर कुछ करो, नचनिया बनने केबारे में मत सोचो। हालांकि मुझे मेरे माता-पिता का भरपूर आशीर्वाद मिला, जिसके कारण मैं आज अपनी पहचान बनाने में सफल हुआ हूं।
आपकी पारिवारिक स्थिति कैसी थी?
मैं एक साधारण परिवार का सदस्य था। हम पांच भाई-बहनों के लालन-पालन का दायित्व मेरे पिताजी पर था। आप समझ सकते हैं कि किन-किन कठिनाइयों से गुजरना पड़ा होगा उन्हें। आज सोचता हूं तो लगता है कितना दुरूह वक्त था वो। आज मुझे लगता है कि मैं अपने माता-पिता की उम्मीदों पर खरा उतरा हूं। उन्हें भी अच्छा लगता है, जब लोग कहते हैं कि मैं उनका बेटा हूं।
सफलता के लिए किसे देते हैं श्रेय?
बेशक अपने माता-पिता, अपने बुरे वक्त के साथियों और उत्तर प्रदेश व बिहार केअपने भाई-बहनों को, जिनके प्यार की बदौलत ही आज मैं इस मुकाम पर हूं।
आप आज मुंबई में पूरब की माटी का प्रतिनिधित्व करते हैं ?
बहुत अच्छा लगता है यह शब्द सुनना, लेकिन मैं मानता हूं कि मैं अपनी माटी की खुशबू को जन-जन तक पहुंचाने के उद्देश्य से ही इस क्षेत्र में आया हूं। अपना गांव, अपना प्रदेश, अपनी भोजपुरी सबकी खुशबू हमेशा मेरे साथ रहती है मुझे लगता है कि हर इंसान किसी न किसी उद्देश्य से इस दुनिया में आता है। शायद मेरा उद्देश्य उत्तर प्रदेश, बिहार की संस्कृति, बोली को आम लोगों में मुखरित करना है। आपको याद होगा बिग बॉस मैंने दुनिया को उस शो के माध्यम से अपनी भाषा की खुशबू का एहसास कराया।
वर्तमान में कैसा चल रहा निजी, सार्वजनिक और फिल्मी जीवन?
तीनों ही जीवन में मैं अपने आपको खुशनसीब मानता हूं। निजी जीवन में मैं एक अच्छा पति, अच्छा पिता और अच्छा बेटा हूं, सबका भरपूर प्यार मुझे मिलता है। सार्वजनिक जीवन भी खुशहाल है। हर क्षेत्र के लोगों में अच्छी पैठ बन गई है। जब भी वक्त मिलता है, मैं सेवा केलिए तैयार रहता हूं। जहां तक फिल्मी जीवन की बात है तो आज का दौर मेरे लिए अब तक का सबसे अच्छा दौर है आज हिंदी फिल्म जगत ने भी मुझे सिर आंखों पर बिठा रखा है
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें