मंगलवार, फ़रवरी 07, 2012

गीत-संगीत ही मेरा जीवन है - ममता राउत


भोजपुरी दर्शकों का लोकप्रिय चैनल ‘‘महुआ’’ के चर्चित रियलिटी शो ‘सुर-संग्राम’ के एक साल के अंतराल के बाद आये फैसले में उपविजेता ममता राउत आज किसी परिचय की मोहताज नहीं है, लेकिन इस बुलन्दी पर पहुँचने हेतु संगीत के प्रति लगन और कड़ी मेहनत करनी पड़ी। बचपन से ही पढ़ाई के साथ ही साथ गीत-संगीत का जुनून ही आज पूरे भारत में रांची (झारखण्ड) का नाम रौशन कर रही है। ममता राउत कहती है कि मेरे पिताजी बैजू बावरा और मोहम्मद रफी के गीतों के प्रशंसक हैं ओर उनके गीत हमेशा गुनगुनाते रहते हैं। मेरे दादाजी रामवृक्ष राउन नौंटकी कंपनी चलाते थे और खुद मंच पर गाते भी थे। इस वजह से संगीत विद्या विरासत में मिली है। लेकिन मेरी बड़ी बहन ललिता राउन जो शादी से पहले स्टेज शो किया करती थी वह मेरी प्रेरणा की स्रोत रही है। ममता राउन का गीत गाने का सिलसिला स्कूल में 6वीं कक्षा से इंसाफ की डगर पर बच्चों दिखाओ...गाने से शुरू हुआ है और आज पूरे भारत के आज कई शहरों में सौ से अधिक शो कर चुकी हैं। उन की सफलता का आलम यह है कि सन 2007 में झारखण्ड आईडल का खिताफ मिला तथा मेरी आवाज सुनो, (सा रे गा मा पा बिहार) की विजेता रही है एवं रांची के सबसे बड़े संगीत प्रतियोगिता ‘शंखनाद’ में हिट गीत ‘झाड़ू पोछा करब नहीं’ से पाश्र्व गायन की शुरूआत करने से लेकर अब तक मुकाबला, दामाद चाही फोकट में, इलाका, गुलाम, पागल प्रेमी, राम लखन, रंगदारी टैक्स, दंगल, मंगल फेरा, प्यार भईल परदेसी से, जोड़ी बंधन, रंग दऽ प्यार के रंग में, जिनगी तोहरे नाम कइली, कईसन पियवा के चरितर बा, गजब सीटी मारे सईंया पिछवारे, डोल चढके दुल्हिन ससुरार चलेली इत्यादि फिल्मों में गीत गा चुकी है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें