शनिवार, दिसंबर 03, 2011

बदलेगा भोजपुरी फिल्मों का माहौल-शैलेश श्रीवास्तव


कुंठित और कुत्सित मानसिकता की उपज के रूप में बदनाम भोजपुरी सिनेमा सचमुच ही संक्रमण काल के दौर से गुजर रहा है। करोड़ों का राजस्व देनेवाली भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री एक अदद पारिवारिक-सामाजिक श्रेणी की ऐसी फिल्म देने में नाकाम हो रही है, जिसे उल्लास के साथ कोई भी दर्शक अपने परिवार के साथ देख सके। फिल्मों का बनना तो जारी ही है, लेकिन, सारी की सारी फिल्में अस्वस्थ मानसिकता से ग्रसित दर्शकों के लिए ही होती हैं। इन फिल्मों में वही सारी बातें होती हैं, जो एक नशाखोर अथवा टपोरी को प्रिय लगती है। नशा करने के बाद एक ठरकी आदमी कैसे मस्ती करते-करते अपने कपड़े तक उतार फेंकता है, अधिकांश फिल्मों में भी श्लील और सभ्य संस्कारों को निर्वसन देखा गया है। लेकिन, ऐसा भी नहीं है कि कोई भी इसकी चिन्ता करनेवाला नहीं है। नौजवान निर्देशक शैलेश श्रीवास्तव एक स्वस्थ विचारधारा वाले निर्देशक हैं। इनकी दो फिल्में-‘‘तुलसी बिन सूना अंगनवा’’ और ‘‘ससुरो कब्बो दामाद रहल’’ शीघ्र ही प्रदर्शित होने जा रही हैं। शैलेश की मानें तो ये दोनों ही एक स्वस्थ मनोरंजन वाली फिल्में हैं। शैलेश श्रीवास्तव से इन्हीं मुद्दों को लेकर हुई बातचीत के प्रमुख अंश:
भोजपुरी सिनेमा के माथे से अश्लीलता-अभद्रता के कलंक का टीका अभी तक मिटा नहीं है। आप भी इस बात से सहमत हैं कि भोजपुरी फिल्में पथभ्रष्ट हो गयी हैं?
हां, मैं बिल्कुल सहमत हूं। भोजपुरी फिल्में सचमुच पथभ्रष्ट हो चुकी हैं। आज कोई भी शरीफ आदमी न तो खुद भोजपुरी फिल्म देखना चाहता है, न ही घर-परिवार में इन फिल्मों का नाम लेना चाहता है। अश्लील दृश्य-द्विअर्थी संवादों ने भोजपुरी सिनेमा को गर्त में ढकेल दिया है। सबसे दुर्भाग्यपूर्ण बात ये है कि जो लोग सक्षम हैं, वही इस दिशा में निष्क्रिय पड़े हैं। लोगों को ‘रिकवरी’ से मतलब रह गया है, कौन क्या कहता है, इससे किसी को कोई लेना-देना नहीं।
आपकी तो दो-दो फिल्में प्रदर्शन को तैयार हैं। आपकी फिल्में कितना इस संक्रमण से प्रभावित हैं?
मेरी फिल्में संक्रमित नहीं बल्कि दोनों ही फिल्में भोजपुरी सिनेमा को इस दलदल से निकालने में सहायक होंगी। ‘‘तुलसी बिन सूना अंगनवां’’ तो भोजपुरी फिल्मों के गंदे माहौल को परिष्कृत ही कर देगी। ऐसा नहीं कि मैं समाज सुधारक हो गया हूं, लेकिन, मेरी फिल्में ऐसी ज़रूर हैं, जिससे आपकी फिल्में बनाने का मार्ग प्रशस्त होगा। इस फिल्म में विनय आनंद और मोनालिसा की मुख्य जोड़ी है। दूसरी फिल्म ‘‘ससुरो कब्बो दामाद रहल’’ एक सम्पूर्ण मनोरंजक फिल्म है और बहुत ही साफ-सुथरी है। दोनों ही फिल्मों को आप पूरे परिवार के साथ देख सकते हैं। इसमें गुड्डू रंगीला के साथ संगीता तिवारी, पूनम सागर और आंनद मोहन हैं।
एस.एम. जहीर, अनुपम श्याम, शक्ति कपूर, भरत कपूर जैसे सिद्धहस्त कलाकारों को भोजपुरी में उतारने के पीछे आपका क्या तर्क रहा?
मैं रंगमंच से हूं, इसलिए मेरी कोशिश रही कि जब फिल्में करूं तो कलाकारों के चयन में भी सतर्क रहूं। सुनील पाल, विनय आनंद, मोनालिसा को भी निर्देशित कर चुका हूं।
आगे की योजनाएं क्या हैं?
‘‘छपरहिया’’ और ‘‘देवदासी’’ पर काम चल रहा है। मेरे ख़्याल से ये दोनों फिल्में भोजपुरी फिल्मों के लिए एक उपलब्धि होंगी।
और रंगमंच ?
नाटकों से मेरा लगाव बना रहता है। दो नाटक भी निर्देशित कर रहा हूं।

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