शनिवार, जुलाई 11, 2009

लक से मेरी दूसरी पारी शुरू हो रही है- रवि किशन


१९ साल पहले अभिनय की भूख लेकर मुंबई आया जौनपुर का छोरा रवि किशन भोजपुरी फिल्मो का महानायक तो बन गया लेकिन हिन्दी फिल्मो में असफलता का दंश उन्हें सालता रहा। उन्हें इस बात का मलाल तो अवश्य था की अच्छे अभिनय और हीरो की छवि के वावजूद हिन्दी फ़िल्म इंडस्ट्रीज में उन्हें वो मुकाम क्यूँ नही मिल पाया जिसके वो हकदार थे। लंबे अरसे के बाद आखिरकार साल २००९ रवि किशन की जिंदगी में नई रौशनी लेकर आया है। अष्ट विनायक सिने विजन की सोहम शाह निर्देशित लक में रवि किशन एक मजबूत किरदार के रूप में नज़र आने वाले हैं। संजय दत्त, मिथुन चक्रवर्ती , इमरान खान और श्रुति हसन जैसे कलाकारों के बीच रवि किशन का किरदार काफी महत्वपूर्ण मन जा रहा है। ख़ुद रवि किशन भी लक में अपने किरदार राघव को लेकर काफी उत्साहित है।भोजपुरी से हिन्दी में पुनर्वापसी को लेकर रवि किशन से विस्तृत बातचीत हुई । प्रस्तुत है अंश -
लक में आपका किरदार अन्य अभिनेताओ से किस तरह अलग है ?
सबसे पहले तो मैं आपको बता दूँ , लक कुछ लकी लोगो की कहानी है। उनमे से मैं भी एक हूँ। जहाँ तक मेरे किरदार की बात है - मैं एक मनोरोगी की भूमिका में हूँ, जिसका नाम राघव है। राघव इतना लकी है की मौत उसका कुछ भी नही बिगाड़ सकती है। लक में लोगो की मौत पर जुआ लगता है और सबसे अधिक जुआ मुझ पर ही लगाया जाता है। मुझ पर फिल्माए गए दृश्य भी लाजवाब हैं। मुझे खुशी है की सोहम ने मुझ पर भरोसा किया और मेरे किरदार को नई दिशा मिली ।
किस तरह के दृश्य हैं लक में?
लक के हर दृश्य अन्य हिन्दी फिल्मो से बिल्कुल अलग हैं, जिसे देखकर दर्शक काफी रोमांचित होंगे। खाई में कूदना, हेलिकोप्टर से हजारो फिट की ऊंचाई से कूदना, समंदर में शार्क मछलियों के बीच गोता लगना, चलती ट्रेन के उपर जबरदस्त फाइट , ट्रेन के सामने छलांग लगाना जैसे कुछ दृश्य इस फ़िल्म को अन्य फिल्मो से अलग करता है। मेरे लगभग बीस साल के फिल्मी सफर में ऐसे दृश्यों से मेरा सामना पहली बार हुआ है।
कैसा अनुभव रहा ?
मौत को सामने देखने का अनुभव काफी भयावह होता है। हलाँकि सुरक्षा व्यवस्था काफी थी लेकिन दो बार मुझे ऐसा लगा की अब मौत निश्चित है। पहली बार जब मैं समंदर में शार्क मछलियों के बीच था। दरअसल सोहम ने सभी को स्कुआ डाइविंग की अच्छी ट्रेनिंग दी थी, लेकिन उस दौरान मैं तीन दिनों के लिए मुंबई आ गया था, इसीलिए मुझे उस बारे में खास जानकारी नही थी। शूटिंग के दिन ही थोडी बहुत जानकारी दी गई और जब आक्सीजन का मास्क पहन जब मैं पानी में उतरा तब मुझे अंदाजा हुआ की मेरे साथ एक दो नही कई शार्क मछलियां हैं। सच पूछिए तो मुझे लगा मेरी मौत निश्चित है। एक पल में मुझे मेरे सारे अपने याद आ गए। दूसरी बार जब मेरे और इमरान के बीच ट्रेन के उपर फाइट सीन फिल्माया जा रहा था तब मैं चलती ट्रेन से गिरते गिरते बचा था। हलाँकि बचने के क्रम में मुझे काफ़ी चोटें आई लेकिन हमने कुशलता पूर्वक शूटिंग पूरी की ।
आपके सह कलाकार का रवैया आपके साथ कैसा था ?
बहुत ही अच्छा ... मिथुन दा, संजू बाबा और डैनी सर से तो मेरी पुरानी पहचान थी। इमरान और श्रुति से मेरी मुलाकात सेट पर ही हुई। श्रुति के तो खून में ही अभिनय है और वो बिल्कुल सहजता से सारे दृश्य को अंजाम देती है। उसका व्यवहार भी काफी अच्छा रहा। फ़िल्म में उसके साथ मेरे कई दृश्य हैं। अगर आपके सन्दर्भ में लक को देखा जाए तो एक शब्द में आप क्या कहेंगे ?
दिल से कहूँ तो लक से मेरी हिन्दी इंडस्ट्रीज में मेरी वापसी हो रही है। रिलीज़ के पूर्व ही सिर्फ़ प्रोमो देखकर ही मुझे कई बड़ी फिल्मो के ऑफ़र आ रहे हैं। दो नई फिल्में मैंने साइन भी की है लेकिन उसके बारे में मैं चर्चा फिलहाल नही करूंगा। लक के बाद मणि सर की रावण और श्याम बेनेगल सर की वेल्डन अब्बाजी सारी कसर पूरी कर देगी।
आप हिन्दी फिल्मो में व्यस्त हैं तो क्या भोजपुरी फिल्में नही करेंगे ?
भोजपुरी फिल्में नही करने का तो सवाल ही नही उठता है। भोजपुरी फिल्मो के कारण ही आज हिन्दी फिल्मो का द्वार मेरे लिए खुला है । वैसे भी भोजपुरी मेरी मातृभाषा है और मुझे भोजपुरी फिल्मो में काम करना पसंद है। जहाँ तक हिन्दी फिल्मो में व्यस्तता की बात है तो मैं भोजपुरी में अपनी फिल्मो की संख्या थोडी कम कर रहा हूँ। प्रस्तुति- उदय भगत

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