शुक्रवार, जून 12, 2009

छोटे परदे पर लौटा गाँव


भारतीय मनोरंजन का सबसे सशक्त मध्यम छोटा परदा इन दिनों गाँव की मिटटी की खुशबू से गुलज़ार हो रहा है। देश के लगभग सभी चंनेलो पर ग्रामीण संस्कृति से सराबोर धारावाहिकों की मांग बढ़ रही है और इसका श्रेय जाता है जी टीवी को ।एक दौर ऐसा भी था जब दूरदर्शन के धारावाहिकों में माती की खुशबू मिलती थी, लेकिन प्राइवेट चंनेलो ने बाजारवाद की दुहाई देते हुए ऐसे धारावाहिकों की जड़ी लगा दी जिसमे न तो हमारे गाँव की खुशबू थी न ही कोई अच्छी कहानी । पच्चीस हज़ार लोगो की मानसिकता कोपच्चीस करोड़ की मानसिकता को टी.आर.पी.का नाम दिया गया और सम्पूर्ण विज्ञापन जगत इसपर ही नाचने लगी . विज्ञापन जगत की मांग के आधार पर धारावाहिकों का निर्माण होने लगा, और हमारी संस्कृति इसी बाजारवाद की आग में झुलसकर दम तोड़ने लगी। मज़े की बात तोये है की टी.आर.पी.के जिस टोटके को ध्यान में रखकर धारावाहिकों का निर्माण हो रहा था , उस टी.आर.पी.में सिर्फ़ मेट्रो सीटी को ही शामिल किया गया था, तथाकथित अंग्रेजीदा लोगो ने यह भरम फैला रखा था की विज्ञापन जगत शहरो पर हीनिर्भर है। जी टीवी के कई चर्चित धारावाहिकों में लेखक और रचनात्मक प्रमुख की भूमिका निभा चुके धनंजय मासूम भी इस से इत्तिफाक रखते है। बकौल मासूम एक वक्त ऐसा भी था जब कोई भी चैनल ग्रामीण पृष्ठभूमि की कहानियो को सुनना भी पसंद नही करते थे,लेकिन जी टीवी के धारावाहिकों में उन्होंने गवई अंदाज़ वाले किरदारों को दाल कर इसकी शुरुवात की। जी टीवी की नम्बर वन धारावाहिक अगले ज़नम मोहे बिटिया ही कीजो का निर्माण का निर्माण भी इसी शुरुवात का एक हिस्सा है। ग्रामीण पृष्ठभूमि के विषयों पर अच्छी पकड़ रखने वाले मासून ने तो गाँव वाला क्रिएशन नाम से ख़ुद का प्रोडक्शन हाउस भी खोल रखा है और कई ग्रामीण विषयों पर धारावाहिक निर्माण की प्रक्रिया भी उन्होंने शुरू कर दी है। अगले जनम.... की सफलता ने अन्य चंनेलोँ को भी इस तरह के धारावाहिकों के निर्माण के लिए आकर्षित किया। कलर्स की धारावाहिक भाग्य विधाता , स्टार प्लस की मितवा आदि धारावाहिक भी ग्रामीण पृष्ठभूमि पर ही आधारित है, यही नही जी टीवी पर एक और धारावाहिक प्रसारण की बाट जोह रहा है। भाग्य विधाता के संवाद लेखक अमित झा के अनुसार इन् धारावाहिकों की सफलता कीवजह सीधे लोगो के दिलो में उतरना है। उन्होंने बताया की भाग्य विधाता के कलाकारों के चयन में उन कलाकारों को प्राथमिकता दी गई है जो ग्रामीण क्षेत्रो का प्रतिनिधित्व करते हैं। कुल मिलकर यही कहा जा सकता है की छोटे परदे पर एक बार फिर से गाँव वापस लौट गया है।

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