रविवार, जून 13, 2010

स्टार नहीं सभ्यता-संस्कृति और परम्परा चलती है - डॉक्टर सुनील




बिहार झारखंड मोशन पिक्चर्स एशोसिएशन के अध्यक्ष डॉक्टर सुनील कुमार को फिल्म उद्योग में एक हरफनमौला व्यक्तित्व के रूप में जाना जाता है। एक सफल एमबीबीएस डॉक्टर हैं, एक सफल वितरक हैं, एक सफल प्रशासक है और एक सफल राजनितिज्ञ के साथ-साथ एक सफल निर्माता भी हैं। उन्होंने अब तक तीन फिल्में बनायी है। बंगला में ‘‘कुली’’ भोजपुरी में ‘‘चाचा भतीजा’’ और ‘‘दामिनी’’। तीनों ही फिल्में बॉक्स ऑफिस पर जर्बदस्त सफलता अर्जित की। पेश है डॉक्टर सुनील से बात चीत के प्रमुख अंश:-
सुनील जी, आप बिजेम्पा के अध्यक्ष भी है, विधायक भी है, एक डॉक्टर भी है फिल्म वितरक और निर्माता भी। इतने सारे कामों एवं व्यस्तता के बावजूद आप फिल्म निर्माण के लिए कैसे समय निकालते है। फिल्म निर्माण क्या आपका पेशा है ?
देखिये, मैं कोई भी काम दिल से मन लगाकर करता हूँ और कोई भी काम अगर आप दिल से करते है तो पूरी शक्तियाँ आपको उसमें सफलता दिलाने में लग ही जाती है। इसलिये लोग मुझे हर क्षेत्र में सफल मानते है। रही बात फिल्म निर्माण की तो यह मेरा पेशा नहीं है। मैं फिल्म का निर्माण करता हूँ लोगों को राह दिखाने के लिए। मैंने एक बंगला में फिल्म बनायी थी ‘‘कुली’’। उस वक्त बगंला फिल्मों में मिथुन चक्रवती को लोग भूल गये थे। जब मैंने फिल्म बनाई और प्रदर्शित की तो बंगला फिल्मों के सारे रिकोर्ड टूट गये। जिससे मिथुन चक्रवर्ती की बंगला फिल्मों में रिइण्ट्री हुई। उस फिल्म की पूरी शूटिंग मैंने मैसूर और हैदराबाद में किया था।
भोजपुरी फिल्मों के निर्माण में कैसे आये?
जब भोजपुरी फिल्म पुर्नजिवीत हुई तो लोग बोलते लगे कि यहाँ सिर्फ स्टार कास्ट वाली ही फिल्में चलती है लेकिन मेरा मानना है कि क्षेत्रीय भाषाई फिल्मों में स्टारडम नहीं चलता है। क्षेत्रिय भाषा में अगर भाषा को आत्मा में समेट कर अगर अच्छी कहानी पर फिल्म बनायी जाये तो वह निश्चित तौर पर चलता है। यही सोचकर मैं भोजपुरी फिल्म निर्माण में उतरा।
चाचा भतीजा की योजना कैसे बनाई।
वर्ष 2005 में जब राज्य सरकार बदली और बदलाव आया, तो हमने बिहार के बदलते परिवेश को देखते हुए युवाओं पर ध्यान केन्द्रित कर एक कहानी तैयार की, उस पर काम किया और इस बात का पूरा ध्यान रखा कि फिल्म स्वस्थ मनोरंजन के साथ मार्गदर्शक भी साबित हो। ऐसा हुआ भी। फिल्म पूरे हिन्दुस्तान में धूम मचायी। उसकी पूरी शूटिंग मैंने बिहार में ही की थी, वह भी नये कलाकरों के साथ।
चार वर्षों बाद आपने फिर ‘‘दामिनी’’ की नीव कैसे डाली?
मुझे जिम्मेवारी स्वीकारने में बड़ा मजा आता है। ‘‘दामिनी’’ के निर्माण के पीछे कई कारण थे। एक तो इधर मैं कुछ दिनों से भोजपुरी सिनेमा के निर्माण से खीन्न हो गया था। लोग भोजपुरी सिनेमा को बदनाम कर रहे थे। लोग बोल रहे थे कि बिना अश्लीलता के भोजपुरी फिल्म बन ही नहीं सकती। दूसरी की निर्माता भोजपुरी सिनेमा बनाते है तो अपना सारा पैसा कलाकारों को देने में ही लगा देते है जिससे वे अच्छी फिल्म नहीं बना पाते और फिल्म असफल हो जाती है। तो ‘‘दामिनी’’ बनाकर मैं लोगों का यह बताना चाहता था कि अगर मजबूत कहानी हो और उसे नये तरीके से परोसा जाये ता निश्चित तौर पर दर्शक उसे पसंद करेंगे चाहे उस फिल्म में स्टार हो अथवा न हो। क्योंकि दर्शक भी तलाश में रहते है कि उनको कोई अच्छी फिल्म देखने को मिले।
‘‘दामिनी’’ की कहानी क्या है?
दामिनी एक ऐसे अनछुये विषय पर आधारित फिल्म है जिसे आज तक हिन्दुस्तान के फिल्म निर्माताओं ने कभी नहीं हुआ था। भारतीय संस्कृति और हिन्दु रिति रिवाज में जो शादियाँ होती है वह दो दिलों का मेल होता है। पति पत्नी एक दूसरे को जीवन भर साथ निभाने का वादा करते है। वह अग्नि को साक्षी मानकर सात फेरे लेते हैं और साथ ही सात वचन पति द्वारा दिया जाता है तथा पांच वचन पत्नी द्वारा। इन वचनों पर आधारित है यह फिल्म।
ऐसी विषय आपके दिमाग में कैसे आयी?
देखिये, क्षेत्रिय भाषाई फिल्मों में अगर आप वहां की सभ्यता-संस्कृति एवं परम्परा से हटकर फिल्में बनायेंगे तो आप निश्चित तौर पर असफल साबित होंगे। इसलिए मैंने यहाँ के सभ्यता-संस्कृति और परंपरा के अनुरूप ‘‘दामिनी’’ बनायी और दामिनी की मुख्य भूमिका में रानी चटर्जी को लिया। क्योंकि रानी में वह दम था जो हमारे विषय के अनुकूल पर्दे पर काम कर सके।
दामिनी को दर्शकों से कैसा रिस्पोंस मिला है?
भोजपुरी सिनेमा के इतिहास में पहली बार इतनी बड़ी शुरूआत किसी भोजपुरी फिल्म को नहीं मिली थी। वह भी एक नन स्टार कास्ट फिल्म को। भोजपुरी सिनेमा के तथाकथित सुपर स्टारों की फिल्मों को भी ऐसी ओपनिंग कभी नहीं लगी थी और न सहारा गया था। अगर किसी स्टार कास्ट वाली फिल्म अगर बॉक्स ऑफिस पर थोड़ी बहुत चली भी है तो उससे निर्माता को कुछ विशेष लाभ नहीं मिल सका। स्टारों के जेब जरूर भर गये।
आपकी आगे की क्या योजना है?
मैं चाहता हूँ कि हमारे निर्माता बंधु इन सारे पहलुओं को ध्यान में रखकर फिल्म बनाये जिससे भोजपुरी सिनेमा का मान-सम्मान बढ़े। इसलिए हमने निर्णय लिया है कि अब हर साल एक फिल्म जरूर बनाऊँगा।
आपकी अगली फिल्म की निर्माण कब होगी और उसका नाम क्या होगा? कौन-कौन कलाकार होंगे?
अगली फिल्म सेट पर कब जायेगी यह तो तय नहीं किया है। लेकिन कहानी पर काम चल रहा है। कलाकार विराज भट्ट और रानी चटर्जी जरूर होंगे। एक नई हिरोईन से भोजपुरी इण्डस्ट्री को परिचय कराऊँगा।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें