भोजपुरी के आज के दौर यानी की तीसरे चरण की शुरुवात भोजपुरी फिल्मो के शो मेन मोहन जी प्रसाद की एक छोटी बजट की फिल्म सैयां हमार से हुई थी । इस फिल्म की सफलता ने भोजपुरी फिल्मो का बंद पड़ा द्वार फिर से खोल दिया और इसी के साथ जनम हुआ सुजीत कुमार, राकेश पांडे, कुणाल सिंह के बाद के नए स्टार की जो हैं आज के सदाबहार सुपर स्टार रविकिशन । आज यूँ तो भोजपुरी में भी स्टार सिस्टम हाबी हो गया है और ढेर सारे सुपर स्टार हो गए हैं लेकिन रविकिशन की जगह लेने वाला कोई नहीं है। इसकी सबसे बड़ी वजह ये है की रविकिशन को छोड़ सारे स्टार संगीत की सीधी चढ़ कर रुपहले परदे पर आये हैं जबकि रविकिशन इकलौते स्टार हैं जो सोने की तरह संघर्ष की आग में तप कर कुंदन बने हैं। इसके अलावा रविकिशन भोजपुरी फिल्म जगत के अकेले स्टार हैं जो हिंदी फिल्म जगत , छोटे परदे पर भी खासे व्यस्त हैं। यही नहीं भोजपुरी फिल्म जगत की ओर रुख करने वाली कोर्पोरेट कंपनियों की भी वो पहली पसंद हैं। रविकिशन से उनके संघर्ष यात्रा , पारिवारिक जीवन और सार्वजनिक जीवन पर विस्तृत बातचीत हुई। प्रस्तुत है कुछ अंश :
हिन्दी फिल्मों में भी कामयाबी पाई है। अब तक छोटे परदे पर चैंकानेवाले अंदाज में दिख रहे हैं। क्या आगे की योजना ? क्या टूट रहा है भोजपुरी से नाता ?
सबसे पहले तो मैं आपको बता दूँ मैं भले ही हिन्दी फिल्मो या छोटे परदे पर कितनी ही कामयावी हासिल कर लूँ लेकिन भोजपुरी फिल्मो से नाता नही तोडूंगा, क्योंकि ये वो भाषा है जिसे मेरी माँ बोलती है, जिसने मुझे पहचान दी है । मैं एहसान फरामोश नहीं हूँ, जब मैं दर दर की ठोकरे खा रहा था...छोटे छोटे रोल के लिए भटक रहा था तब मुझे किसने सहारा दिया ? मैं एक दो साल में तो एक्टर बना नहीं , काफी मेहनत की है । वैसे भोजपुरी मेरी मात्री भाषा है जाहिर है इस भाषा से मुझे बचपन से लगाव है। जहां तक भोजपुरी छोड़ने की बात है पता नहीं मुझ पर ये इलज़ाम क्यों लगता है। आज भी मेरे पास एक दो नहीं कुल सोलह फिल्में हैं और हर सप्ताह इसमें बढ़ोतरी हो रही है।
जौनपुर के गांव में गुजरा आपका बचपन कैसा रहा। पढ़ाई-लिखाई और संस्कार कहां से और कैसे?
जौनपुर से लगभग २२ किलोमीटर दूर केराकत तहसील के गाँव विसुई में १७ जुलाई को मेरा जनम हुआ था। मेरे पिता पंडित श्याम नारायण शुक्ला गाँव के ही मन्दिर के पुजारी हैं । एक मध्यमवर्गीय परिवार के आम बच्चे की तरह मेरा भी लालन पालन हुआ। बचपन में मेरा भी अधिकतर समय मन्दिर में बीतता था और एक अच्छे संस्कार की नीव वहीँ से पड़ी। आज मैं कहीं भी रहूँ अपने अराध्य देव महादेव की पूजा के बाद ही मेरे दिन की शुरुवात होती है। आज आधुनिकता की चकाचैंध में हम अपने संस्कारों को भूल गए हैं और पाश्चात्य संस्कृति की ओर भाग रहे हैं , लेकिन आपके बचपन का संस्कार अच्छा है तो आप कभी अपने राह से नही भटकेंगे । मुझे याद है बचपन की एक घटना .....उस समय मैं मुश्किल से पाँच साल का रहा हूँगा । मेरे गाँव के पास वाले गाँव में किसी का निधन हो गया था ...और उनकी शवयात्रा मेरे गाँव होकर ही शमशान भूमि जा रही थी । किसी की शवयात्रा देखने का वो मेरा पहला अनुभव था। मैंने अपने पिताजी से पुछा ...ये लोग कहाँ जा रहे हैं ? पिताजी ने बताया की यही जीवन का सच है , कोई कितना भी बड़ा क्यों ना हो उन्हें सब कुछ छोड़ कर जाना पड़ता है। वो बात आज भी मेरे जेहन में है और शायद यही वजह है की कोई भी गलत काम मेरे द्वारा जान बूझ कर नही होता है क्योंकि मुझे पता है हर गलत काम का हिसाब मुझे भगवान् को देना है।
कितना संघर्ष करना पड़ा जीवन को बनाने में। कितना योगदान रहा माता-पिता का और कितनी मिली उलाहना।
मैं जिस क्षेत्र में हूँ वहां मुकाम हासिल करना आसान नही है , बचपन से ही मेरी इच्छा थी की मैं कुछ ऐसा काम करूं जिससे पुरी दुनिया मुझे जाने । फिल्मो के प्रति लगाव था और दिल में कहीं न कहीं ये ख्वाब छुपा था की मैं भी परदे पर आउँ, मेरे भी पोस्टर लगे । मेरा सपना काफी बड़ा था इसीलिए उसे साकार करने में भी काफी मेहनत करनी पड़ी। कई कई बार एक ही ऑफिस में जाकर चक्कर लगना पड़ता था, छोटे छोटे रोल भी वो ऑफर नही करते थे। अब आप समझ सकते हैं की उत्तरप्रदेश के एक छोटे से गाँव के एक इंसान के लिए ये ख्वाब कितना बड़ा था। मेरे माता पिता को जब मेरे ख्वाब की जानकारी मिली तो पहली प्रतिक्रिया यही थी की पढ़ लिख कर कुछ करो न की नचनिया बनने के बारे में सोचे । हालांकि मेरे माता पिता का मुझे भरपूर आशीर्वाद मिला , जिसके कारण मैं आज अपनी पहचान बनने में सफल हुआ हूँ।
आपके परिवार की स्थिति (बचपन में)। पिता की आकांक्षाएं और उसको कितना कर पाए पूरा।
मैं एक साधारण परिवार का सदस्य था , मेरे पाँच भाई बहन का लालन पालन का दायित्य मेरे पिताजी पर थी । आप समझ ही सकते हैं किन किन कठिनाइयों से गुजरना पड़ा होगा उन्हें। आज सोचता हूँ तो लगता है कितना दुरूह वक्त था वो। लेकिन आज मुझे लगता है की मैं अपने माता पिता की उम्मीदों पर खरा उतरा हूँ, उन्हें भी अच्छा लगता है जब लोग कहते हैं की उनका बेटा रवि किशन है।
सफलता के लिए किसे देते हैं श्रेय।
बेशक अपने माता पिता , अपने बुरे वक्त के साथियो और सबसे बड़ा अपने उत्तर प्रदेश और बिहार के अपने भाई बहनों को जिनके प्यार की बदौलत मुझे सफलता मिली ।
आप आज भी मुंबई में पूरब की माटी का असल प्रतिनिधित्व करते हैं, क्या है इसका उद्देश्य।
बहुत अच्छा लगता है यह शब्द सुनना, लेकिन मैं मानता हूँ की मैं अपनी माटी की खुशबू को जन जन तक पहुचाने के उद्देश्य से ही इस क्षेत्र में आया हूँ। अपना गाँव , अपना प्रदेश , अपनी भोजपुरी ...सबकी खुशबू हमेशा मेरे साथ रहती है...मुझे लगता है हर इंसान किसी न किसी उद्देश्य से इस दुनिया में आता है शायद मेरा उद्देश्य उत्तरप्रदेश बिहार की संस्कृति, बोली को आम लोगो में पहचान देना है। आपको याद होगा बिग बॉस... मैंने दुनिया को उस शो के माध्यम से अपनी भाषा की खुशबू का एहसास कराया ।
वर्तमान में कैसा चल रहा निजी, सार्वजनिक और फिल्मी जीवन।
तीनो ही जीवन में मैं अपने आपको खुशनसीब मानता हूँ। निजी जीवन में मैं एक अच्छा पति , अच्छा पिता और अच्छा बेटा हूँ , सबका भरपूर प्यार मुझे मिलता है। सार्वजनिक जीवन भी खुशहाल है , हर क्षेत्र के लोगो में अच्छी पैठ बन गई है जब भी वक्त मिलता है मैं सेवा के लिए तैयार रहता हूँ । जहाँ तक फिल्मी जीवन की बात है तो आज का दौर मेरे लिए अब तक का सबसे अच्छा दौर है ...आज हिन्दी फिल्म जगत ने भी मुझे सर आँखों पर बिठा रखा है...मणि सर ( मणिरत्नम ) श्याम बाबु ( श्याम बेनेगल ) सहित कई बड़े फिल्मकारो के साथ काम कर रहा हूँ। भोजपुरी में भी कई बड़े प्रोजेक्ट हैं , अमरीकन कंपनी पन फिल्म्स की पहली भोजपुरी फिल्म जला देब दुनिया तोहरे प्यार में सहित लगभग सोलह फिल्मे मेरे पास है और हर सप्ताह इसमें बढ़ोतरी हो रही है। छोटे परदे पर भी मैंने अपनी दमदार मौजूदगी दर्शाई है । कुल मिलाकर काफी अच्छा चल रहा है सब कुछ ।
राजनीति कितनी सुहाती है, कब तक उतरने का है इरादा।
मैं कांग्रेस का कार्यकर्ता हूँ और राजनीति से मुझे लगाव है, मैं ख़ुद चाहता हूँ की इस क्षेत्र में आकर अपने क्षेत्र , अपने लोगो के लिए कुछ करूं। लेकिन सही वक्त का इंतजार है और वो वक्त कल भी आ सकता है , पाँच साल बाद भी और दस साल बाद भी।
उदय भगत
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें