भोजपुरी फ़िल्म इंडस्ट्रीज के बढ़ते दायरे ने कई बड़ी बड़ी कंपनियों को अपनी ओर आकर्षित किया लेकिन इस इंडस्ट्रीज की लूट-खसोट की नीति ने उन्हें वापसी का रास्ता दिखा दिया। इन सबके बीच एक शख्स ऐसा भी है जिन्होंने मायूस होकर फ़िल्म निर्माण से अपना पल्ला झड़ने के बजाए काजल की कोठरी से सफ़ेद रंग निकालने का फ़ैसला किया । उस निर्माता का नाम है जीतेश दुबे जो आज भोजपुरी फ़िल्म इंडस्ट्रीज में टेस्ट मैच खेलने में नही बल्कि ट्वेंटी ट्वेंटी मैच खेलने के अपने फैसले को सही अमली जामा पहना रहे हैं। एक कहाबत है इरादे अगर नेक हो राह निकल ही जाती है। अपनी पहली फ़िल्म अपनी पहली ही फ़िल्म धरम वीर से चर्चा में आए जीतेश दुबे मात्र दो साल में ही भोजपुरी फ़िल्म जगत के नामचीन निर्माता, वितरक और अब फायनेंसर की श्रेणी में शामिल हो चुके हैं। फ़िल्म निर्माण से लेकर फायनेंसर के सफर को लेकर जीतेश दुबे से विस्तृत बातचीत हुई प्रस्तुत है कुछ अंश :
मात्र दो साल में ही आपने फ़िल्म निर्माण से लेकर फायनेंसर तक का काम शुरू कर दिया ....इतनी जल्दवाजी क्यों ?
मैंने जल्दवाजी में आज तक कोई काम नही किया । मैं आम लोगो की तरह व्यवसाय को मात्र पैसा कमाने का माध्यम नही मानता , जब मैंने अपनी पहली फ़िल्म धरम वीर के निर्माण की प्रक्रिया शुरू की तभी से सिख ही रहा हूँ और मेरी सीखने की प्रवृति ने मुझे प्रेरित किया की अगर मैं फिल्मो का निर्माण कर सकता हूँ को वितरण क्यों नही ? इसीलिए मैंने फ़ैसला किया की जब मैं सौ लोगो की यूनिट को लेकर शूटिंग कर सकता हूँ तो दस लोगो को साथ लेकर फ़िल्म वितरण को सही दिशा क्यों नही दे सकता ? मैंने इसे अपनी अगली फ़िल्म मुन्नीबाई नौटंकी बाई पर अपनाया और रिजल्ट पूरी फ़िल्म इंडस्ट्रीज को पता है। मैं तो कहूँगा जो निर्माता लगातार फ़िल्म निर्माण पर भरोसा करते हैं उन्हें सिर्फ़ फिल्मो और उनकी मार्केटिंग पर ही नही दर्शको की नब्ज़ तक पर नज़र रखनी चाहिए।
आप मानते है की फ़िल्म वितरण में खामिया है ?
हर क्षेत्र में अच्छे और बुरे लोग होते हैं , मैं अगर पैसा लगाता हूँ , मेहनत करता हूँ तो मुझे इसकी जानकारी तो होनी ही चाहिए । मैंने अपनी फ़िल्म वितरण कंपनी अनूप इंटरप्राजेज का निर्माण ही इसलिए किया है की इससे अच्छे अच्छे लोग जुड़े, निर्माताओ को उनकी मेहनत का फल मिले ।
किस तरह की फिल्मो का वितरण कर रहे हैं ?
फिल्मो के वितरण का मेरा माप दंड बिल्कुल साफ़ है, फिल्मे अच्छी होनी चाहिए। मैंने हाल ही में विनय आनंद की जाडे में बलमा प्यारा लागे रिलीज़ किया था। अगले सप्ताह खटाई लाल मिठाई लाल रिलीज़ कर रहा हूँ। इसके अलावा रवि किशन पवन सिंह की रंगबाज़ दरोगा , मनोज तिवारी की छोटका भइया जिंदाबाद आदि फिल्मे हैं।
आपकी फ़िल्म ब्रिजवा की काफ़ी चर्चा है , किस तरह की फ़िल्म है ?
जिस तरह मैंने मुन्नी बाई नौटंकी बाई के निर्माण के पहले दर्शको की पसंद नापसंद का जायजा लिया था, ठीक उसी तरह मैंने ब्रिजवा के निर्माण के पहले इस प्रोजेक्ट पर शोध किया । यह भी लीक से हटकर बनी फ़िल्म है । मुझे पूरा भरोसा है की यह फ़िल्म भी दर्शको की कसौटी पर खरी उतरेगी। फ़िल्म में विनय आनंद, सुदीप पांडे, दीपक दुबे , ब्रिजेश त्रिपाठी , सादिका , गुंजन पन्त और शीर्षक भूमिका में फूल सिंह हैं।
क्या बड़े स्टार पर से भरोसा उठ गया है ?
बिल्कुल नही मेरी अगली फ़िल्म मार देव गोली केहू न बोली में रवि किशन हैं। मैं काम में कोई समझौता नही करता । कहानी के हिसाब से ही पात्रो का चयन करता हूँ।
श्री कृष्ण क्रियेशन की आगामी योजना क्या है ?
मेरा मकसद साल में कम से कम तीन फिल्में बनाकर उसे रिलीज़ करना करना है । हमारी कंपनी द्बारा प्रस्तुत फ़िल्म तू ही मोर बालमा की शूटिंग भी इसी महीने शुरू हो रही है । साल २०१० की फिल्मो की भी योजना बन गई है उस पर जल्द ही काम शुरू हो जाएगा। फिलहाल उसपर चर्चा करना जल्दवाजी होगी ।
आपने अनेक निर्देशक व अभिनेता के साथ काम किया है ..आपके पसंदीदा कौन है
जहाँ तक कलाकारों की बात है मेरे पसंदीदा कलाकार रविकिशन, विनय आनंद और रानी चटर्जी हैं और पसंदीदा निर्देशक असलम शेख हैं। प्रस्तुति : उदय भगत
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