शनिवार, मार्च 12, 2011

भोजपुरी को देंगे नए अर्थ : चंद्रप्रकाश

वाराणसी : सामाजिक सरोकारों और सुधी पाठकों से सीधे जुड़ने की अपनी मुहिम के तहत दैनिक जागरण ने बुधवार को चर्चित फिल्म निर्देशक डा.चंद्र प्रकाश द्विवेदी, लब्ध साहित्यकार डा.काशी नाथ सिंह, युवा फिल्म निर्माता विनय तिवारी और भोजपुरी फिल्मों के स्टार कलाकार रविकिशन जैसे दिग्गजों के साथ मिल बैठ कर भारतीय सिनेमा के विविध आयामों पर खुली चर्चा की। कला और व्यावसायिक फिल्मों के फर्क से शुरू हुई बातचीत कई विषयों के मंथन से गुजरती भोजपुरी फिल्मों की दशा-दिशा तक गई। सबसे सार्थक बात यह उभर कर सामने आयी कि डा.द्विवेदी जैसे गंभीर फिल्मकार भी भोजपुरी सिनेमा को ले कर बहुत पुरउम्मीद हैं मगर इसकी लीक तोड़ने की अपनी मजबूत शर्त के साथ। डा. द्विवेदी ने बेलौस कहा कि वे भोजपुरी सिनेमा को नए अर्थ देने को बेहद उत्कंठित है और मौका मिला तो अपनी चुनी हुई कहानी पर वे एक नायाब भोजपुरी फिल्म भारतीय चित्रपट को देना चाहेंगे। अपनी निर्माणाधीन फिल्म मुहल्ला अस्सी की चर्चा करते हुए उन्होने बताया कि एक हवाई यात्रा के दौरान इंडिया टुडे मैगजीन में नाट्यकार सुश्री उषा गांगुली द्वारा निर्देशित नाटक काशीनामा की छपी एक तस्वीर ने मुझे आकर्षित किया। पता चला की यह बनारस पर आधारित है। काफी ढूंढ़ने के बाद मुझे मूल उपन्यास काशी की अस्सी के बारे में पता चला। उसे पढ़ने के बाद मुझे लगा कि इस कहानी को फिल्म का रूप लेना चाहिए और लोगों के सामने आना चाहिए। तो इस तरह काशीनामा का रिव्यू देखकर इस उपन्यास पर फिल्म बनाने का विचार मन में आया। उक्त बातें कही चर्चित धारावाहिक चाणक्य और फीचर फिल्म पिंजर व मोहल्ला अस्सी के निर्देशक चंद्रप्रकाश द्विवेदी ने। मोहल्ला अस्सी के निर्देशक समेत निर्माता विनय तिवारी, उपन्यासकार डॉ. काशीनाथ सिंह, अभिनेता रविकिशन आदि दैनिक जागरण के नदेसर स्थित कार्यालय आए और यहां पर सभी ने फिल्म और उससे जुड़े मुद्दों के अलावा सिनेमा के विभिन्न पहलुओं पर सभी से बातचीत की और सबके सवालों का जवाब भी दिया। आपकी फिल्में अक्सर इतिहास पर आधारित और विशेष काल-समय से जुड़ी होती हैं, इसके पीछे क्या कारण है, पूछने पर डॉ. द्विवेदी ने कहा कि मुझे यह ज्यादा चुनौतीपूर्ण लगता है क्योंकि पीरियड फिल्मों में कहानी तो सालों या दशकों पुरानी होती है लेकिन आज भी लोगों का जुड़ाव और उनकी रूचि उसमें होती है। आप आस्कर का रिकॉर्ड पर नजर डालें तो अनगिनत पिरियड फिल्में हैं जो नामिनेट हुई और कई अवार्ड भी जीती। अगर हम और बातों में हम हॉलीवुड की नकल करते हैं तो यहां क्यों चूक जाते हैं। मेरी ऐसी फिल्में बनाने में विशेष रुचि है। आपकी यह फिल्म मोहल्ला अस्सी आर्ट फिल्म है या कमर्शियल, के जवाब में डॉ. द्विवेदी बताते हैं कि मैं यह सोचकर कभी फिल्म नहीं बनाता कि वह आर्ट है या कमर्शियल। मैं हमेशा कहानी से प्रभावित होता हूं और अब तो दर्शक भी नए प्रयोग देखना चाहते हैं। लगान व पीपली लाइव इसके उदाहरण है। आर्ट और कमर्शियल जैसे शब्द हमारे बनाए हुए हैं। दर्शक तो बस यह चाहता है कि फिल्म उसे पसंद आए। आप प्रयोगवादी होने के बावजूद कलाकारों के मामले में प्रयोग करने से बचते हैं और हमेशा स्थापित कलाकारों के साथ ही फिल्म बनाते हैं, इस बार भी आपने ऐसा ही किया, क्यों.. इस बात पर डॉ. द्विवेदी कहते कि इस बात में मुझे निर्माताओं का ध्यान रखना पड़ता है। जिस-जिस निर्माता के पास मैं अपनी स्कि्रप्ट लेकर गया, उन्होंने मेरी स्कि्रप्ट सुनने से पहले ही यह सवाल किया कि हीरो कौन है? किसी ने यह नहीं पूछा कि काशी का अस्सी क्या है और आपकी स्कि्रप्ट क्या है, यह सब देखते हुए मुझे स्थापित कलाकारों के साथ काम करना सेफ लगता है। इसके साथ ही सन्नी देओल और रविकिशन के साथ काम करने का अनुभव शानदार है और मुझे यह कहने में कोई गुरेज नहीं कि चर्चित चेहरों के होने से एक आकर्षण रहता है। टीवी धारावाहिकों के गिरते स्तर के बारे में उन्होंने कहा कि धारावाहिक टीआरपी के लिये बनाए जा रहे हैं और इस वजह से ही मैंने टीवी धारावाहिक एक और महाभारत को दो साल निर्देशित करने के बाद छोड़ दिया क्योंकि लगा कि मैं इससे न्याय नहीं कर पाऊंगा। आज विज्ञापनदाता तय करता है कि धारावाहिक की स्कि्रप्ट क्या होगी तथा उसका निर्देशन कैसा होगा। आज हमें सीता नहीं शीला चाहिए। वहीं साहित्यकार काशीनाथ सिंह से जब पूछा गया कि एक फिल्म में रूपांतरित होने के बाद उनकी कृति कितनी सुरक्षित रह पाएगी तो उन्होंने कहा,मैं खुशकिस्मत हूं कि मुझे डॉ. साहब जैसा निर्देशक मिला जो लेखक के स्वाभिमान और अहमियत का सम्मान करना जानते हैं। मेरे हिसाब से किसी रचना में जितने आयाम होंगे वह रचना उतने ही ज्यादा दिनों तक ताजा रहती है क्योंकि उसके हर आयाम को चौंकाने के साथ ही नवीनता का अहसास कराते हैं। आप अपने उपन्यास और फिल्म में अंतर की कितनी संभावना देखते हैं, इस बात पर उन्होंने कहा कि मैं कलम से और चंद्र प्रकाश कैमरे की आंख से चीजों को देखते हैं तो बातों में थोड़ा परिवर्तन तो स्वाभाविक है लेकिन मैं जानता हूं कि डॉ. द्विवेदी साहित्यिक रचना के प्रति संवेदनशील व्यक्ति हैं और वह जो भी परिवर्तन करेंगे वह सुखद परिवर्तन होगा। आरंभ में अतिथियों का स्वागत दैनिक जागरण के निदेशक एवं स्थानीय संपादक वीरेंद्र कुमार ने किया। इस मौके पर समाचार संपादक राघवेंद्र चढ्डा सहित आईनेक्स्ट व रेडियो मंत्रा के सहयोगी भी मौजूद रहे। धन्यवाद ज्ञापन हिमांशु उपाध्याय ने किया।
Courtsy - Dainik Jagran ( Varanasi )

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