वर्ष 2009 के लोक सभा चुनावों में काफ़ी संख्या में फ़िल्मी सितारे भी हिस्सा ले रहे हैं.
इनमें से कुछ फ़िल्मी सितारे तो चुनाव मैदान में हैं जबकि कुछ चुनाव प्रचार करने वाले हैं.
वैसे फ़िल्मी सितारों का राजनीति में आने का सिलसिला काफ़ी पुराना है लेकिन इस बार ये संख्या काफ़ी ज्यादा है। देश में उत्तर से लेकर दक्षिण तक ये फिल्मी हस्तियां लोक सभा चुनावों में शिरकत कर रही हैं. दक्षिण में तेलुगू सिनेमा के सुपरस्टार चिरंजीवी ने पिछले साल ही अपनी पार्टी प्रजा राज्यम पार्टी लांच की थी, वो इस बार दो जगहों से चुनाव लड़ेंगे.
देखिए,चुनावों में कुछ राजनीतिक पार्टियां जिनका जनाधार मजबूत नहीं है, वो अपना आधार मजबूत करने के लिए फ़िल्मी कलाकारों को टिकट दे रही हैं
उनके अलावा एनटी रामाराव के बेटे नंदामुरी बालाकृष्णन, सत्तर और अस्सी के दशक की मशहूर अभिनेत्री जयासुधा और विजया शांति भी चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं.
वहीं उत्तर प्रदेश से भी इस बार कई फिल्मी हस्तियां चुनावों में हिस्सा लेंगी इसमें राज बब्बर, मनोज तिवारी और जया प्रदा शामिल हैं. जबकि रवि किशन इस बार कांग्रेस का प्रचार करेंगे.
उनके अलावा गोविंदा और नगमा महाराष्ट्र में कांग्रेस के लिए प्रचार करेंगे.
अभिनेताओं की विचारधारा
भारतीय जनता पार्टी से जुड़ी स्मृति ईरानी कहती हैं, " देखिए,चुनावों में कुछ राजनीतिक पार्टियां जिनका जनाधार मजबूत नहीं है वो अपना आधार मजबूत करने के लिए फ़िल्मी कलाकारों को टिकट दे रही हैं." वो कहती हैं, " जहां तक भारतीय जनता पार्टी का सवाल है, तो विनोद खन्ना गुरुदासपुर से संसद सदस्य हैं और शत्रुघ्न सिन्हा को पटना से टिकट दिया गया है, ये दोनों केंद्र में मंत्री रह चुके हैं."
संजय दत्त भी चुनाव लड़ना चाहते थे लेकिन अदालत ने उनकी याचिका ख़ारिज कर दी
लेकिन राजनीतिक पार्टियां फिल्म स्टारों के चुनावों में हिस्सा लेने को कतई बुरा नहीं मानतीं.
कांग्रेस नेता संजय निरुपम कहते हैं, " सामाजिक सरोकार के नाते अगर कोई कलाकार राजनीति में आता है तो मैं इसे बिल्कुल बुरा नहीं मानता हूँ. अगर कोई फ़िल्म स्टार अपनी पसंद की पार्टी में शामिल होकर उसका प्रचार करता है तो वो भी बुरा नहीं है क्योंकि उसकी भी तो अपनी एक विचारधारा हो सकती है." भाजपा से पटना साहिब से लोक सभा के उम्मीदवार शत्रुघ्न सिन्हा कहते हैं, "जो फ़िल्मी कलाकार राजनीति में आ रहे हैं अगर वो जोश में नहीं बल्कि होश में आ रहे हैं तो उनका स्वागत होना चाहिए और किसी तरह का भेदभाव नहीं होना चाहिए. अगर पत्रकार आ सकते हैं, किसान आ सकते हैं तो फ़िल्म स्टार क्यों नहीं आ सकते." वे कहते हैं, " लेकिन दूसरी बात मैं ये कहना चाहूंगा कि जिस तरह से राजनीतिक पार्टियाँ इन फ़िल्मी कलाकारों का चुनावी मौसम में अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करती हैं और बाद में उन्हें अलग थलग कर देना मेरी निगाह में बिल्कुल सही नहीं है."
राजनीति-फ़िल्म का रिश्ता
राजनीति के जानकार भी मानते हैं कि राजनीति और फ़िल्मों का रिश्ता काफ़ी पुराना है और ये दोनों एक दूसरे की ज़रुरतों को पूरा करते हैं.
लोकसत्ता के संपादक कुमार केतकर कहते हैं, " पंडित नेहरु के जमाने में भी राजकपूर और नरगिस वगैरह को टिकट दिया गया था और वो राज्यसभा में भी गए थे."
अगर कोई फ़िल्म स्टार अपनी पसंद की पार्टी में शामिल होकर उसका प्रचार करता है तो वो भी बुरा नहीं है क्योंकि उसकी भी तो अपनी एक विचारधारा हो सकती है
लेकिन वे कहते हैं कि आजकल जिस तरह से फ़िल्मस्टार्स राजनीति में आ रहे हैं उसके पीछे वजह ये है कि एक तो ये फ़िल्मस्टार्स पैसे वाले होते हैं तो पार्टी पर आर्थिक दबाव नहीं रहता.
फ़िल्मस्टार्स राजनीति में राजकीय सम्मान पाने की लालसा में आते हैं जब कि राजनीतिक पार्टियां उनके जरिए ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुँचना चाहती हैं, दोनों एक दूसरे की ज़रुरत पूरी करते हैं.
इस बार के लोक सभा चुनावों में फ़िल्मी कलाकारों का इतनी बड़ी संख्या में जमावड़ा देखकर ये कहा जा सकता है कि एक तरफ तो जहां राजनीतिक पार्टियां इन रुपहले पर्दे के सितारों के सहारे ज्यादा से ज्यादा लोगों को लुभाने और अपनी सीटों की संख्या बढ़ाने की तैयारी में हैं.
वहीं ये फ़िल्मी सितारे भी सत्ता के गलियारे में जाने को लेकर काफ़ी उत्साहित दिख रहे हैं।
सोर्स - बीबीसी.कॉम
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