१९६२ में बिहार की राजधानी पटना में जब पहली भोजपुरी फिल्म का मुहूर्त हुआ था तब किसी ने सोचा तक नहीं था की एक छोटा सा पौधा कालान्तर में ऐसा वट वृक्ष बन जायेगा जिसकी छाव में लाखो लोग अपने परिवार के साथ जीवन यापन करेंगे . १९६२ से लेकर २००१ तक भोजपुरी फिल्मो का बनना जारी रहा . उस दौर में अच्छी अच्छी पारिवारिक फिल्मे बनी लेकिन दो बार ऐसा हुआ जब फिल्मो के निर्माण में लम्बा गैप आ गया. बीच बीच में इक्का दुक्का फिल्मे अपनी मौजूदगी दर्ज कराती रही . साल २००2 में विश्वनाथ शाहाबादी के भांजे मोहनजी प्रसाद ने हिन्दी फिल्मो में अच्छा ब्रेक पाने की तलाश में भटक रहे जौनपुर के एक छोरा को लेकर सैयां हमार नाम की एक फ़िल्म बनाकर भोजपुरी फ़िल्म जगत के अब तक के स्वर्णिम युग की शुरुवात की । कुछेक लाख में बनी इस फ़िल्म ने काफी अच्छा व्यवसाई किया।
और यहीं से उदय हुआ एक नए कलाकार रवि किशन व भोजपुरी फिल्म जगत के आज के दौर का सफ़र. मोहन जी प्रसाद और रवि किशन की जोड़ी ने लगातार चार हिट फिल्मे देकर भोजपुरी फिल्मो की दिशा ही बदल दी. फिर तो मानो बाढ़ सी आ गयी. कई नए निर्माता निर्देशकों ने इस फिल्म जगत की ओर रुख किया .
आज अगर हर साल ५० से भी अधिक फिल्मे बन रही है तो उसका श्रेय जौनपुरिया छोरा रवि किशन को भी जाता है. १७ जुलाई १९७१ को जूनपुर के कराकर तहसील के एक छोटे से गाँव के पंडित श्याम नारायण शुक्ला व ज़डावती देवी के घर एक किलकारी गूंजी थी. वो किलकारी थी रविन्द्र नाथ शुक्ला यानी आज के रवि किशन की. बचपन से ही कलाकार प्रवृति के रवि का मन पढाई लिखाई में कम और नाचने और अभिनय में ज्यादा लगता था . मासूम सी सूरत वाले रवि उन दिनों अपने गाँव में प्रतिवर्ष होने वाले रामलीला में भाग लेने लगे वो भी सीता मैया के रोल में . मां की डांट और बाबूजी की पिटाई से भी रवि किशन अपने अभिनय का मोह छोड़ नहीं पाए और अंततः १९९० में वो मुंबई आ गए . उस समय मुंबई के बांद्र के बाज़ार रोड में उनकी एक छोटी सी दूध की दूकान हुआ करती थी. रवि किशन ने भी दूध बेचना शुरू कर दिया और फिल्म स्टूडियो के चक्कर लगाना शुरू कर दिया.
संघर्ष यात्रा
एक छोटे से गाँव के कलाकार को आज के दौर में भले ही उतना संघर्ष ना करना पड़ता हो क्योंकि आज अपने अभिनय का हूनर दिखाने के लिए फिल्म के अलावा छोटा पर्दा भी मौजूद है. पर उस दौर में अभिनय का एक मात्र मध्यम सिनेमा ही था. जुनूनी रवि किशन ने हिम्मत नहीं हारी , इस स्टूडियो से उस स्टूडियो के चक्कर लगाना शुरू किया जिस भी निर्माता निर्देशक से मिलता वहाँ यही सुनना पड़ता की तुम मिथुन दा के डुप्लीकेट लगते हो. आखिरकार मेहनत रंग लायी और उधार की जिन्दगी में उन्हें पहला मौका मिला जीतेंद्र के साथ जिसमे काजोल मुख्य अभिनेत्री की भूमिका में थी. रवि किशन का पहला शोट जीतेंद्र के ही साथ था . डरे सहमे पर अंदर से कुछ कर गुजरने की तमन्ना दिल में रखे रवि ने अपना पहला शोट दिया . जीतेंद्र ने रवि किशन की तारिफ की तो उनका हौसला बढ़ गया. इस फिल्म के बाद रवि किशन को काम तो मिलना शुरू हो गया पर अपनी भूमिका से वो संतुष्ट नहीं थे. दस साल तक रवि किशन ने फिल्मो में अच्छी भूमिका के लिए संघर्ष जारी रखा . साल २००० में उन्हें छोटे परदे पर हवाएं और हेल्लो इन्स्पेक्टर नामक धारावाहिक में काम करने का मौका मिला . धारावाहिक ने उनकी आय तो बढ़ा दी पर बड़े परदे पर छाने की ललक कायम रही.
भोजपुरी का सफ़र
एक शूटिंग के दौरान रवि किशन की पहचान चरित्र अभिनेता ब्रिजेश त्रिपाठी से हुई थी. ब्रिजेश त्रिपाठी कई बड़ी हिंदी और भोजपुरी फिल्मो में काम कर चुके थे और भोजपुरी परिवेश की कई हिंदी फिल्म बना चुके निर्देशक मोहन जी प्रसाद के काफी करीबी थे. मोहन जी प्रसाद उन दिनों एक भोजपुरी फिल्म की योजना बना रहे थे और एक हीरो की तालाश में थे. उन्होंने हीरो तलाशने का जिम्मा उन्होंने ब्रिजेश त्रिपाठी को सौपा था. ब्रिजेश त्रिपाठी ने जब रवि किशन से भोजपुरी फिल्म में काम करने का प्रस्ताव रखा तो उन्होंने तुरत हाँ कर दी और उसी रात ११ बजे दोनों मोहन जी प्रसाद के बांद्रा स्थित आवास पहुचे . मोहन जी ने रवि किशन को देखते ही तुरत उन्हें सगुन के तौर पर ग्यारह हजार रूपये दिए. फिल्म की शूटिंग बिहार में हुई और फिल्म हिट रही . फिल्म में मिथुन दा भी अतिथि भूमिका में थे. इस फिल्म के बाद मोहन जी प्रसाद ने लगातार चार फिल्मे रवि किशन के साथ बनायीं और चारो हिट रही . उनकी चौथी फिल्म थी पंडित जी बतायीं ना बियाह कब होई जिसमे रवि किशन के साथ नगमा थी . इस फिल्म ने सफलता का इतिहास रच दिया . फिर तो अनेक निर्माता - निर्देशक भोजपुरी फिल्मो की ओर देखने लगे . मुंबई में मजदूरों की भाषा कही जाने वाली भोजपुरी को सम्मान दिलाने के लिए रवि किशन ने अथक प्रयास किया . सदी के महानायक अमिताभ बच्चन हो या शाहरुख खान रवि किशन ने सभी बड़े सितारे को किसी ना किसी मध्यम से उन्हें भोजपुरी के साथ जोड़ा . अमिताभ बच्चन ने तो भोजपुरी फिल्मो में पहले भी काम किया था जबकि शाहरुख़ खान दो बार रवि किशन की फिल्म के कार्यक्रम में आकर भोजपुरी को मिडिया में स्थान दिलाया. उस समय हिंदी के पत्र पत्रिका भी भोजपुरी से मूह फेरे हुए थे . रवि किशन ने अखबारों के दफ्तर में जा जा कर भोजपुरी की जम कर वकालत की . टीवी चैनलों ने भी उसे प्रमुखता से स्थान दिया और आज भोजपुरी फिल्म पुब्लिसिटी के मामले में भी अन्य रीजनल फिल्मो से पीछे नहीं है . भोजपुरी के इतिहास में दो बार ऐसा हुआ है जब फिल्मे बननी बंद हो गयी थी. रवि किशन को इसका एहसास था इसीलिए वो कोई मौका चूकना नहीं चाहते थे. रही सही कमी भोजपुरी की गायकों ने अभिनय के क्षेत्र में आकर पूरी कर दी. रवि किशन की कई फिल्मो की शूटिंग विदेश में हुई . उदित नारायण की रवि किशन अभिनीत फिल्म कब होई गवना हमार को राष्ट्रीय पुरस्कार से भी नवाजा गया. भोजपुरी की लोकप्रियता को देखते हुए भोजपुरी फिल्म अवार्ड की भी शुरुवात हुई .
बड़ी कंपनियों को लाने का श्रेय
रवि किशन ने कई बड़ी कंपनियों को भोजपुरी के क्षेत्र में लाया . इंडो अमेरिकन कंपनी पन फिल्म्स हो या भारत की महिंद्रा एंड महिंदा, या भी दक्षिण भारत की अल्टुरा फिल्म्स . पन फिल्म्स की पहली फिल्म जरा देब दुनिया तोहरा प्यार में को तो प्रतिष्ठित कांस फिल्म समारोह में इन्डियन फिल्म पवेलियन में प्रदर्शित करने का भी मौका मिला . महिंद्रा एंड महिंदा ने रवि किशन के साथ एक बड़े बजट की फिल्म हम बाहुबली का निर्माण किया . दिलीप कुमार ने जब फिल्म निर्माण में कदम रखा तो उन्होंने रवि किशन के साथ ही पहली भोजपुरी फिल्म बनायीं. जितने भी नामी गिरामी लोगो ने भोजपुरी फिल्म बनायीं , रवि किशन उसका हिस्सा रहे . फिलहाल तेलगु की सबसे बड़ी कंपनी ए.के. इंटरटेनमेंट व १४ रील फिल्म्स की सहयोगी कंपनी अल्टुरा फिल्म्स रवि किशन के साथ रणवीर नाम की एक फिल्म बना रही है. रवि किशन ने कई कोर्पोरेट कंपनियों को अपनी तरफ खिंचा और इस अवधारणा को जन्म दिया की अपने क्षत्र में वो हिंदी के किसी बड़े स्टार से कम नहीं है , तभी तो डाबर, थम्स अप, निहार तेल सहित २२ बड़ी कंपनियों ने उन्हें बिहार उत्तर प्रदेश के लिए अपना ब्रांड अम्बेसडर बना रखा है.
अवार्ड और सम्मान
भोजपुरी फिल्म जगत में एवार्ड या सम्मान की बात आती है तो रवि किशन के अलावा दूर दूर तक कोई नहीं टिकता . भोजपुरी फिल्मो के इस दशक के इतिहास में अब तक कुल नौ अवार्ड समारोह हुए हैं जिनमे ६ में नंबर वन का खिताब रवि किशन के ही नाम है, इसके अलावा, वो बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार, छतीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमण सिंह, दिल्ली के मुख्यमंत्री शीला दीक्षित सहित कई सम्मानीय लोगो के हाथो पुरस्कृत हो चुके हैं. हाल ही में उन्हें भारतीय स्काउट एंड गाइड द्वारा उनके संस्थापक की याद में प्रतिवर्ष दिए जाने वाले राष्ट्रीय पुरस्कार से इस बार रवि किशन को ही नवाजा गया . यही नहीं प्रसिद्द फिल्म वितरण कंपनी एरोज़ ने भी रवि किशन की फिल्मो को ही विदेशो में प्रदर्शित करने का फैसला किया है और संतान नाम की एक फिल्म का प्रदर्शन भी हो चुका है .
हिंदी में भोजपुरी का चेहरा
हाल ही में हिंदी फिल्म एजेंट विनोद की समीक्षा में एक बड़े समीक्षक ने लिखा था की रवि किशन भले ही हिंदी सिनेमा में भोजपुरी का चेहरा कहे जाते हैं पर यह भी एक कटु सत्य है की वो आज हिंदी की बड़ी फिल्मो का अनिवार्य अंग बन गए हैं. यह बात पूरी तरह से रवि किशन पर लागू होती है . हिंदी के कई बड़े दिग्गज की हर फिल्म में रवि किशन के लिए रोल लिखा जाने लगा है. श्याम बेनेगल की वेलकम टू सज्जन पुर, वेल डन अब्बा और एक अनाम निर्माणाधीन फिल्म में रवि किशन काम कर रहे है. मणिरत्नम की रावण हो या सोहम शाह की लक रवि किशन ने अपने अभिनय से सबका दिल जीता है. आज रवि किशन के पास बड़े बैनर की एक दर्ज़न से भी अधिक हिंदी फिल्मे हैं जिनमे विक्रम भट्ट की डेंजरस इश्क, विनोद बच्चन की जिला गाज़ियाबाद, इशक, जीना है तो ठोक डाल, अष्टविनायक की दो अनाम फिल्मे आदि शामिल है.
वर्त्तमान दौर
वर्तमान दौर में भी रवि किशन अच्छे फिल्म मेकर की पहली पसंद है. दयाल निहलानी जैसे बड़े निर्देशक की पहली भोजपुरी फिल्म हो या दक्षिण के बड़े निर्माता की पहली भोजपुरी फिल्म रणवीर . रवि किशन के पास भोजपुरी फिल्मो की लम्बी कतारें हैं . बिना किसी ब्रेक के निरंतर शूटिंग में व्यस्त रहने वाले रवि किशन ना सिर्फ भोजपुरी और हिंदी बल्कि मराठी, बंगला और दक्षिण भारतीय फिल्मो में भी काम कर रहे हैं. किसी भी भोजपुरी अभिनेता के लिए यह एक बड़ी उपलब्धि ही मानी जाएगी की उनकी हिंदी फिल्म में उनके छोटे से रोल को देखकर भी आमिर खान और शाहरुख खान जैसे बड़े अभिनेताओं ने उन्हें बधाई दी. दिलीप कुमार से लेकर आज के दौर के सभी बड़े सितारों के साथ काम कर चुके रविकिशन जल्द ही आमिर खान की होम प्रोडक्शन की एक फिल्म में भी दिखने वाले हैं.
कुल मिला कर यही कहा जा सकता है की रवि किशन ने अपने अभिनय का लोहा तो मनवाया ही है , उनके प्रयास से ही आज भोजपुरी फिल्मो ने अपना दायरा बिहार उत्तर प्रदेश की सीमा को लांघ कर देश विशेष में भी फ़ैल गया है.
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