भोजपुरी फिल्मो के सबसे चर्चित निर्देशक असलम शेख अब लेकर आ रहे हैं राम अवतार । भोजपुरी सुपर स्टार रविकिशन अभिनीत इस फ़िल्म से उन्होंने एक नया चेहरा जुबेर खान को भी लॉन्च किया है। दूर्वा प्रोडक्शन के बैनर तले निर्मात्री विजल राजदा की इस फ़िल्म का एतिहासिक मुहूर्त हाल ही में किया गया। अँधेरी के ट्रियो स्टूडियो में इस मौके पर पूरी भोजपुरी फ़िल्म इंडस्ट्रीज मौजूद थी। रवि किशन और निर्माता जीतेश दुबे ने नारियल तोड़ कर इसकी विधिवत शुरुवात की । इस अवसर पर अभिनेता दिनेश लाल यादव, ब्रिजेश त्रिपाठी, प्रवेश लाल यादव, निर्माता अभय सिन्हा, चंद्रशेखर राव, मधुसुदन मेहता, निर्देशक राज कुमार पांडे, जगदीश शर्मा, शंकर अरोडा, सोनू त्रिपाठी , अभिनेता समीर राजदा, संगीतकार धनन्जय मिश्रा, आदि उपस्थित थे। उल्लेखनीय है की असलम शेख और रविकिशन की जोड़ी ने इसके पूर्व विदाई जैसी सुपर हिट फ़िल्म दी है। यह फ़िल्म बिहार में पचास सप्ताह के बाद भी धूम मचा रही है। मुहूर्त के अवसर पर रविकिशन ने नए अभिनेता जुबेर खान की तारीफ़ की और कहा की भोजपुरी फ़िल्म जगत को ढेर सारे अच्छे अभिनेता की ज़रूरत है, जुबेर निः संदेह अपने अभिनय से भोजपुरी फ़िल्म इंडस्ट्रीज में नाम कमाएगा। जुबेर खान ने भी आत्मविश्वास भरे स्वर में भरोसा जताया की वे रवि किशन की बधाई को व्यर्थ जाने नही देंगे।
सोमवार, सितंबर 28, 2009
अपना रास्ता ख़ुद तय करने में भरोसा - सुशील सिंह
भोजपुरी फ़िल्म इंडस्ट्रीज में अगर अगर अभिनेताओ की बात की जाए तो ऐसे कम ही अभिनेता हैं जिनकी पहचान उनके अभिनय से होती है। सुशील सिंह उन्ही अभिनेताओ में से एक हैं। इ टीवी द्बारा सर्वाधिक लोकप्रिय खलनायक का पुरस्कार पा चुके सुशील सिंह नें खलनायकी को अलविदा कर नायकी के क्षेत्र में कदम रख दिया है। भोजपुरी की अब तक की सबसे चर्चित फ़िल्म मुन्ना बजरंगी के मुन्ना खान का एक नया अंदाज़ अब जल्द ही देखने को मिलेगा फ़िल्म हम हैं मुन्ना भैया में। भोजपुरी फ़िल्म जगत में एक्शन की नई परिभाषा गढ़ने जा रही इस फ़िल्म के एक खतरनाक दृश्य फिल्माए जाने के बाद सुशील सिंह से विस्तृत बातचीत हुई , प्रस्तुत हैं कुछ अंश -
हम हैं मुन्ना भइया के इन खतरनाक दृश्य के लिए आपने डुप्लीकेट का सहारा क्यों नही लिया ?
निर्देशक इकबाल बख्श ने फ़िल्म के सारे दृश्यों पर काफ़ी मेहनत की है और इसके लिए मुझे मानसिक रूप से तैयार भी कराया है। आप देख ही रहे हैं ऐसे एक्शन दृश्य कभी कभार ही देखने को मिलते हैं। जहाँ तक डुप्लीकेट की बात है तो मैं यही कहूँगा - मुझे अपना रास्ता ख़ुद तय करने पर भरोसा है, मेरी पहचान मेरे अभिनय से है , इसलिए रिस्क लेना मैं ज्यादा पसंद करता हूँ।
मुन्ना बजरंगी के मुन्ना खान, कबहू छुटे ना ई साथ वाला भावुक इंसान और हम हैं मुन्ना भइया के टपोरी में से कौन आपके करीब है?
निजी जिन्दगी में मैं कबहू छुटे ना ई साथ वाला इंसान हूँ जो सबके बारे में सोचता है, लेकिन फिल्मी परदे वाला इंसान मेरे किरदार का हिस्सा होता है और उसे जीवंत बनाने के लिए उसमे डूब जाता हूँ। आपने खटाई लाल मिठाई लाल वाला इंसपेक्टर का मेरा किरदार देखा होगा, इसके अलावा जल्द ही एक अन्य फ़िल्म में आप मुझे एक अनोखे अंदाज़ में देखेंगे। उस फ़िल्म में रवि किशन मेरे साथ हैं। जल्द ही फ़िल्म की शूटिंग शुरू हो रही है।
भोजपुरी में पहली बार किसी खलनायक ने नायक का सफर तय किया है..कैसा अनुभव रहा ?
मैं एक अभिनेता हूँ और मेरा मानना है की उसे किसी दायरे में बाँध कर नही रहना चाहिए, बल्कि उसे अभिनय के हर क्षेत्र में पारंगत होना चाहिए, और हर तरह की भूमिका करना चाहिए। भोजपुरी फिल्मो में यह नई बात है लेकिन हिन्दी फिल्मो में शत्रुघ्न सिन्हा और विनोद खन्ना ऐसा कर चुके हैं।
अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि और फिल्मो में आगमन के बारे में बताइए ?
मैं मूलतः बनारस का रहने वाला हूँ और संयुक्त परिवार का हिस्सा हूँ। मेरे पिताजी डॉक्टर गुलाब सिंह पेशे से चिकित्सक हैं। अपना होटल और डेयरी का भी व्यवसाय है । जहाँ तक फिल्मो में आगमन की बात है तो मैं इसे संयोगवस ही मानता हूँ। गरमी की छुट्टियों में मुंबई आया था, फिल्मो के प्रति लगाव तो बचपन से ही था और इत्तेफाक से सोनी टीवी के धारावाहिक आहट में मुझे काम मिल गया । मेरी पहली फ़िल्म आंच थी, जो मुझे लेखक कमलेश पांडे के सहयोग से मिली थी। भोजपुरी फिल्मो में आगमन का श्रेय मैं सुशील उपाध्याय को देता हूँ। वे अपनी फ़िल्म कन्यादान के लिए लोकेशन देखने बनारस आए थे, वहीँ उनसे मुलाकात हुई और भोजपुरी फ़िल्म इंडस्ट्रीज में बतौर खलनायक मेरा आगमन हुआ।
किस तरह की भूमिका करने की चाहत है ?
जिस तरह हिन्दी फिल्मो में अजय देवगन और नाना पाटेकर की छवि है , कुछ वैसी ही भूमिका और छवि की बदौलत भोजपुरी फ़िल्म जगत में अपनी छाप छोड़ना चाहता हूँ।
बुधवार, सितंबर 23, 2009
भोजपुरी का नया सितारा - आशीष
भोजपुरी फ़िल्म जगत में ऐसा कम ही हुआ है जब किसी अभिनेता की पहली ही फ़िल्म काफ़ी सफल हुई हो। बिहार में बड़ी बड़ी और बड़े बड़े सितारों के बीच सफलता का परचम लहरा रही फ़िल्म उमरिया कईली तोहरे नाम के मुख्य अभिनेता आशीष गुप्ता उन्ही में से एक हैं। मूलतः उत्तरप्रदेश के उद्ध्योग नगरी कानपूर के रहने वाले आशीष को बचपन से ही अभिनेता बनने का शौक था, इसीलिए उन्होंने अपने पिता के बिजनेस में हाथ बटाने के वजाय दिल्ली की ओर रुख किया । दिल्ली में मोडलिंग के बाद आशीष मुंबई आए और आर.एस.दुबे प्रोडक्शन के तहत घोषित फ़िल्म उमरिया कईली तोहरे नाम साईंन की । हाल ही में इस फ़िल्म का प्रदर्शन बिहार में हुआ है। इस फ़िल्म में आशीष एक आमिर खानदान के विदेश में पढ़े लिखे होनहार युवक की भूमिका में हैं। उनकी अभिनेत्री रानी चटर्जी है। रानी जैसी नामचीन अभिनेत्री के साथ उनकी जोड़ी को दर्शको ने काफ़ी सराहा है। उनके उपर फिल्माया गया गाना सान्या मिर्जा कट नथुनिया ......काफ़ी हिट रही है। फिल्मी पंडितो का भी आकलन है की आशीष में जबरदस्त अभिनय क्षमता है, जो आने वाले दिनों में उन्हें भोजपुरी के एक स्थापित अभिनेता की श्रेणी में खड़ा कर देगा। उमरिया कईली तोहरे नाम को अपने सफलता की पहली सीढ़ी मानने वाले आशीष का भी यही मानना है। वो कहते हैं अभिनय ही मेरे जीवन का लक्ष्य है और इसी के लिए ख़ुद को समर्पित कर दिया है।
गुरुवार, सितंबर 10, 2009
रवि को लगा त्रिकोण का चक्कर
भोजपुरी फिल्मो के सदाबहार महानायक रवि किशन इन दिनों तीन अलग अलग कोण का चक्कर लगा कर त्रिकोण के चक्कर में फंस गए हैं। दरअसल रविकिशन इन दिनों तीन अलग अलग तरह की फिल्मो की शूटिंग में व्यस्त हैं, और तीनो फिल्मो की शूटिंग का स्थल दो सौ किलोमीटर की परिधि में है। एक तरफ़ जहाँ वे मणिरत्नम की फ़िल्म रावण की शूटिंग मुंबई से लगभग दो सौ किलोमीटर दूर मल्शेज घाट की पहाडी पर हैं, तो वहीँ निर्देशक के.डी.की भोजपुरी फ़िल्म बलिदान की शूटिंग पनवेल स्थित सुर्वे फार्म हाउश में चल रही है। इन सबके बीच टी.पी.अग्रवाल की फ़िल्म ना घर के ना घाट के की शूटिंग मुंबई के कमालिस्तान स्टूडियो में चल रही है। रावण में वे जहाँ अभिषेक और ऐश्वर्या के साथ हैं, तो बलिदान में जैकी श्रोफ्फ़ और ना घर के ना घाट के में वे परेश रावल के साथ हैं। बकौल रवि किशन लगातार तीन अलग अलग तरह की फिल्मो की शूटिंग होने से वे त्रिकोण में फंस गए हैं, साथ ही अलग अलग ढंग का किरदार निभाने के कारण उनमे तालमेल बिठाना भी मुश्किल हो जाता है।