शनिवार, अगस्त 22, 2009

सुधाकर पांडे के नाम पर भोजपुरी अवार्ड की घोषणा।



भोजपुरी जगत ने दी सुधाकर पांडे को भावभीनी श्रधांजलि
भोजपुरी फिल्मो के जाने माने निर्माता स्वर्गीय सुधाकर पांडे के नाम पर हर साल अवार्ड दिया जाएगा। ये घोषणा शनिवार को आयोजित एक शोक सभा में भोजपुरी फ़िल्म अवार्ड समिति के अध्यक्ष विनोद गुप्ता ने की। मुंबई के अँधेरी स्थित आंबेडकर भवन हाल में निर्माता आलोक कुमार और अभय सिन्हा द्वारा सुधाकर पांडे को श्रधांजलि देने के लिए एक शोक सभा का आयोजन किया गया था। इस अवसर पर टी.पि.अगरवाल, दुर्गा प्रसाद मजुमदार, टी.सीरिज के अजय कपूर, भोजपुरी फिल्मो के सुपर स्टार रवि किशन, कुणाल सिंह, विनोद गुप्ता, निर्देशक राज कुमार पांडे, के.डी, बबलू सोनी , हैरी फ़र्नान्डिस, सुनील बूबना, आनंद गहतराज , मुकेश पांडे अभिनेता ब्रजेश त्रिपाठी, पंकज केसरी, मनोज टाइगर, प्रवेश लाल यादव, अभिनेत्री रिंकू घोष, रानी चटर्जी, सादिका रंधावा गीतकार बिपिन बहार, अरिमर्दन सिंह , प्रचारक उदय भगत , समरजीत, शशिकांत सिंह, निशांत सहित फ़िल्म जगत के जाने-माने लोग मौजूद थे। शोक सभा में कुणाल सिंह ने भोजपुरी फ़िल्म जगत के प्रति सुधाकर पांडे के योगदान की चर्चा करते हुए विनोद गुप्ता से आग्रह किया की उनके सम्मान में एक अवार्ड दिया जाए। विनोद गुप्ता ने तत्काल इसकी हामी भरी और कहा की अगले भोजपुरी फ़िल्म अवार्ड में भोजपुरी फिल्मो के प्रचार प्रसार में योगदान देने वालो को इस अवार्ड से सम्मानित किया जाएगा। उल्लेखनीय है की पिछले दिनों युवा निर्माता सुधाकर पांडे का आसमयिक निधन हो गया था। स्वर्गीय पांडे को मनोज तिवारी और दिनेश लाल यादव निरहुआ जैसे अभिनेता को फिल्मी परदे पर लाने का श्रेय जाता है, यही नही उनकी पहली फ़िल्म ससुरा बड़ा पैसावाला ने भोजपुरी फ़िल्म जगत के लिए संजीवनी का काम किया था।

रविवार, अगस्त 16, 2009

उमरिया कईली तोहरे नाम २८ अगस्त से


आर.एस.दुबे पिक्चर्स के बैनर तले निर्माता निर्देशक आर.एस.दुबे की फ़िल्म उमरिया कईली तोहरे नाम बिहार में लगभग २५ सिनेमाघरों में आगामी २८ अगस्त को प्रर्दशित हो रही है। रानी चटर्जी, पवन सिंह , दिव्या देसाई, राजेश विवेक , मेहनाज, पुष्पा वर्मा, उत्तम झा, अशोक नारायाण, महेश राज और नवोदित आशीष गुप्ता अभिनीत उमरिया कईली तोहरे नाम का संगीत पहले से ही धूम मचा रहा है। अरुण फ़िल्म इंटरटेनमेंट प्रस्तुत इस फ़िल्म की सबसे बड़ी खासियत है स्वर कोकिला लता मंगेशकर और संगीतकार राम लक्षमन की जोड़ी का पहली बार किसी भोजपुरी फ़िल्म में साथ साथ आना। फ़िल्म के गीतकार विनय बिहारी हैं, जबकि कथा - पटकथा और संवाद लेखक श्रीगोपाल हैं।फ़िल्म के सभी ११ गाने एक से बढ़कर एक हैं जिन्हें मधुर आवाज से सजाया है ख़ुद लता मंगेशकर, उषा मंगेशकर, उदित नारायण , सुनिधि चौहान , इंदु सोनाली और आज के भोजपुरी के सर्वाधिक लोकप्रिय गायक पवन सिंह ने। उमरिया कईली तोहरे नाम में दो आइटम नम्बर है जिसपर अपनी मादक अदा बिखेरी है भोजपुरी की नम्बर वन आइटम डांसर सीमा सिंह और कविता सिंह ने। फ़िल्म के निर्माता निर्देशक आर.एस.दुबे के अनुसार उमरिया कईली तोहरे नाम मुख्य रूप से एक मनोरंजक पारिवारिक संगीत प्रधान फ़िल्म है, जिसमे रोमांस , एक्शन , कॉमेडी और इमोशन की भरपूर झलक है जो हर वर्ग के दर्शकों को भरपूर मनोरंजन देगा । साथ ही फ़िल्म में अन्धविश्वास के खिलाफ एक संदेश भी है।बहरहाल उमरिया कईली तोहरे नाम के गानों के दीवानों को आगामी २८ अगस्त का बेसब्री से इंतज़ार है।

शनिवार, अगस्त 15, 2009

दुर्भाग्यपूर्ण है शाहरुख़ के साथ दुर्व्यवहार - रवि किशन

अमीरीका में बोलीवूड के सुपरस्टार शाहरुख़ खान के साथ हुए दुर्व्यवहार की भोजपुरी सुपरस्टार रवि किशन ने कड़ी निंदा की है । अपने बयान में रवि किशन ने कहा है की अमेरिकी अधिकारी जान बूझकर हमेशा हिन्दुस्तानियों का अपमान करते हैं। उन्होंने आगे कहा है की ऐसा पहली बार नही हुआ है, इसके पहले भी अमेरिकी एयरलाइंस द्वारा सुरक्षा के नाम पर पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के साथ दु‌र्व्यहार किया गया था। रवि किशन ने कहा है की भारत सरकार को तत्काल अपना रोष प्रकट करना चाहिए। रवि किशन ने कहा है की शाहरुख़ खान ग्लोबल आइकन हैं, उनका अपमान पुरे देश का अपमान है। आजादी के सालगिरह वाले दिन इस तरह की घटना को अंजाम देना कोई इत्तेफाक नही हो सकता, क्योंकि शाहरुख़ खान इसके पहले भी कई बार अमेरिका जा चुके हैं।

प्रिया सिंह की चाहत कबहू छूटे ना ई साथ


मात्र डेढ़ साल में ही कई भोजपुरी अल्बम , फिल्मो के अलावा प्रिंट विज्ञापन में अपनी खूबसूरती का जलवा बिखेर चुकी प्रिया सिंह जल्द ही नज़र आने वाली है भोजपुरी फ़िल्म कबहू छूटे ना ई साथ में। इस फ़िल्म में प्रिया एक आमिर बाप की इकलौती बेटी की भूमिका में है जो अपने कॉलेज में पढने वाले निजाम खान से प्यार करती है। के.डी.द्वारा निर्देशित इस फ़िल्म में प्रिया के अलावा सुशील सिंह, राजीव दिनकर, स्वीटी छाबरा, स्वाति वर्मा और अनिल यादव मुख्य भूमिका में है। हाल ही में सुरेन्द्र पाल की फ़िल्म ऐ भौजी के सिस्टर में स्वेता तिवारी के साथ और जोगी जी धीरे धीरे में पवन सिंह और सिकंदर खरबंदा के साथ अभिनय का जलवा बिखेर चुकी प्रिया निर्देशक राज कुमार पांडे की फ़िल्म भइया के ससुरारी में भी एक गाने पर ठुमका लगाते दिखने वाली है। मूलतः बनारस की रहने वाली प्रिया की अभिनय की भूख बचपन में स्कूल के दौरान ही पड़ गई थी। बकौल प्रिया - अभिनय और गाने के अलावा उसने और कुछ सोचा भी नही , शायाद इसीलिए मनोज तिवारी के साथ विडियो अल्बम करने के बाद उसने मुंबई की ओर रुख कर लिया । महुआ टीवी के कार्यक्रम बिरहा दंगल में विजय लाल यादव के साथ एंकर की भूमिका निभा चुकी प्रिया फिलहाल कई और फिल्मो के लिए अनुबंधित है। प्रिया का स्पष्ट तौर पर कहना है की फ़िल्म इंडस्ट्रीज से उनका घनिष्ट नाता है और उसका कहना है कबहू छूटे ना ई साथ.

भोजपुरी सिनेमा और मायानगरी मुंबई

१६ फरबरी १९६२ को बिहार की राजधानी पटना के एतिहासिक शहीद स्मारक पर आज के विशाल भोजपुरी फ़िल्म इंडस्ट्रीज की नीव रखी गई थी। इस बात को लगभग ५० साल हो गए हैं, कभी बिहार और पूर्वी उत्तरप्रदेश के बाज़ार को ध्यान में रखकर बनाई जाने वाली भोजपुरी फ़िल्म आज बिहार और पूर्वी उत्तरप्रदेश की सीमा से निकल विदेश की धरती पर भी अपना झंडा गाड़ने में सफल रही है। बात अगर मायानगरी मुंबई की की जाए तो आज बिहार के बाद भोजपुरी फिल्मो का सबसे बड़ा बाज़ार मुंबई ही है। १९८४ में बनी फ़िल्म गंगा किनारे मोरा गाँव से लेकर आज तक मुंबई में भोजपुरी फ़िल्म इंडस्ट्रीज ने काफ़ी तरक्की की है। सबसे मजे की बात तो ये है की पहली भोजपुरी फ़िल्म की रूपरेखा मुंबई में ही बनी थी और इसके प्रेरणा श्रोत थे देश के पहले राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ।
1963 में प्रदर्शित विश्वनाथ शाहाबादी की फिल्म गंगा मइया तोहें पियरी चढ़इबोसे भोजपुरी सिनेमा की शुरूआत होती हैं हालांकि 20वीं सदी के पांचवें दशक में भोजपुरी क्षेत्र के कई लेखक कवि कलाकार बम्बई फिल्म उद्योग में सक्रिय थे और इन भोजपुरिहों को अपने देश, गांव-जवार की बड़ी याद सताती थी। बरहज के मोती बीए को हिन्दी फिल्मों में भोजपुरी गीतों के प्रचलन का श्रेय दिया जाना चाहिए इससे हिन्दी भाषी दर्शक भोजपुरी की मिठास से परिचित हुआ।पचास के दशक में भाषाई आधार पर भारत में राज्यों का पुनर्गठन हो रहा था। वास्तव में उसी दौर में हिन्दी फिल्म उद्योग की भी तस्वीर बदल रही थी। सत्यजीत रे ने पाथेर पांचाली बनाकर प्रादेशिक अथवा आंचलिक भाषाओं में सिनेमा बनाने की संभावना और उसकी ताकत दोनों का एहसास करा दिया था। अब हिन्दी फिल्म उद्योग में भी कन्टेंट को लेकर बहस शुरू हुई थी और जिन भाषाओं में सिनेमा नहीं था उन भाषाओं में इस जन कला माध्यम को अपनाये जाने की छटपटाहट इसने पैदा की। 1961 में नितिन बोस के निर्देशन में बनी गंगा-जमुना ने पहली बार अवधी भाषा में संवादों का इस्तेमाल हुआ और भोजपुरी में गीत लिखे गये। फिल्म और उसके गीत सुपरहिट हुए इससे पहली बार यह विश्वास पैदा हुआ कि उत्तर भारतीय बोलियों में भी फिल्म बनायी जा सकती है। इसी साल विश्वनाथ शाहाबादी जो बिहार के एक बड़े व्यवसायी थे और जिन्हें भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डा राजेन्द्र प्रसाद ने भोजपुरी में फिल्म बनाने के लिए प्रेरित किया था; वे बम्बई पहुंचे। दादर में वे प्रीतम होटल में ठहरे जो पुरबियों का अड्‌डा था यहीं उनकी मुलाकात नजीर हुसैन से हुई जो वर्षों से एक पटकथा तैयार करके भोजपुरी फिल्म बनाने की जुगत में थे और इस तरह जनवरी 1961 में नजीर हुसैन के नेतृत्व में गंगा मइया तोहें पियरी चढ़इबो के निर्माण की योजना बनी। फिल्म का निर्देशन बनारस के कुंदन कुमार को सौंपा गया। बनारस के ही रहने वाले कुमकुम और असीम को फिल्म में नायिका और नायक बनाया गया। संगीत निर्देशन की जिम्मेदारी चित्रगुप्त को दी गई तब बकायदा 16 फरवरी 1962 को पटना के ऐतिहासिक शहीद स्मारक पर फिल्म का मुहुर्त सम्पन्न हुआ।1963 में यह फिल्म प्रदर्शित हुई और बेहद सफल हुई। बनारस में यह फिल्म प्रकाश टाकीज में प्रदर्शित हुई थी और प्रदर्शन के एक सप्ताह के भीतर ही इसकी सूचना आसपास के गांवों में फैल गयी और लोग बैलगाड़ी इक्का और पैदल झुण्ड के झुण्ड सिनेमा देखने पहुंचने लगे। प्रकाश टाकीज के बाहर मेले जैसा दृश्य होता था और कहा जाने लगा-‘गंगा नहा विश्वनाथ जी के दरसन कर, गंगा मइया देखऽ तब घरे जा।'भोजपुरी सिनेमा का इतिहास अगर मुंबई के सन्दर्भ में देखा जाए तो १९८४ में पहली बार मुंबई में बसे भोज्पुरियो को अपनी माटी की खुशबू का अहसास कराती फ़िल्म गंगा किनारे मोरा गाँव का परिचय हुआ और मिनर्वा सिनेमा हॉल इसका गवाह बना । आश्चर्यजनक रूप से यह फ़िल्म लगातार चार सप्ताह तक चली और इस तरह मुंबई में भोजपुरी फिल्मो का द्वार खुल गया। इसके बाद लगातार कई फिल्में आई और अपनी मौजूदगी का अहसास कराती रही, लेकिन भोजपुरी फ़िल्म जगत पर आए संकट के बादल ने मुंबई को भोजपुरी फिल्मो से महरूम कर दिया। लंबे अरसे तक मुंबई में कोई भी भोजपुरी फिल्में रिलीज़ नही हुई। साल २००३ में विश्वनाथ शाहाबादी के भांजे मोहनजी प्रसाद ने हिन्दी फिल्मो में अच्छा ब्रेक पाने की तलाश में भटक रहे जौनपुर के छोरा रविकिशन को लेकर सैयां हमार नाम की एक फ़िल्म बनाकर भोजपुरी फ़िल्म जगत के अब तक के स्वर्णिम युग की शुरुवात की । कुछेक लाख में बनी इस फ़िल्म ने काफी अच्छा व्यवसाय किया। इसी कड़ी को आगे बढाया 2005 में प्रदर्शित फिल्म ससुरा बड़ा पइसा वाला ने । इसने भोजपुरी सिनेमा के एक तीसरे दौर को जन्म दिया जो पहली बार बाजार की दृष्टि से नई संभावनाओं को जन्म दे रहा था। इसके बाद तो मानो जैसे भोजपुरी फ़िल्म जगत में उफान आ गया । पंडित जी बताई न बियाह कब होई, दरोगा बाबु आई लव यु , बंधन टूटे ना जैसी फिल्मो ने मुंबई में भी जबरदस्त धूम मचाई और यह सिलसिला बदस्तूर जारी है। मल्टिप्लेक्स के इस दौर में अगर आज मुंबई के सिंगल स्क्रीन सिनेमाघर फल फूल रहे हैं तो इसका श्रेय भोजपुरी फिल्मो को ही जाता है । आज हालत ये है की महाराष्ट की इस धरती पर भोजपुरी सिनेमा ने मराठी फिल्मो को भी पीछे छोड़ दिया है । आपको जानकर आश्चर्य होगा की मुंबई में भोजपुरी फिल्मो का बाज़ार मराठी फिल्मो से कई गुना अधिक है। आज मुंबई के लगभग २० सिनेमा घरो में भोजपुरी फिल्मे प्रर्दशित होती है। कई मल्टीप्लेक्स भी अब भोजपुरी फिल्मो का प्रदर्शन कर रहे हैं। मुंबई में बसे भोजपुरी भाषी का यह अपनी भाषा के प्रति प्यार ही है की आज फ़िल्म निर्माता उत्तरप्रदेश की तुलना में मुंबई से कहीं अधिक कमाई कर रहे हैं। इस सम्बन्ध में रोचक तथ्य यह है की मुंबई में बसे पूर्वी उत्तरप्रदेश के लोगो की तुलना में बिहार के लोग अधिक संख्या में भोजपुरी फ़िल्म देखते है और धीरे धीरे उत्तरप्रदेश के लोगों का रुझान भी भोजपुरी फ़िल्म को लेकर काफ़ी बढ़ रहा है। यह रुझान भोजपुरी फ़िल्म जगत के लिए एक शुभ संकेत है। भोजपुरी फ़िल्म जगत की चर्चा मुंबई के सन्दर्भ में हो और हर साल होने वाली भोजपुरी फ़िल्म अवार्ड की चर्चा न हो तो ये मुंबई के साथ ना इंसाफी होगी। पिछले ४ साल से हर साल भव्य तरीके से भोजपुरी फ़िल्म अवार्ड का आयोजन किया जाता है। इसके अलावा लगभग साड़ी भोजपुरी फिल्मो का मुहूर्त मुंबई में ही होता है। भोजपुरी के सभी स्टार रविकिशन, मनोज तिवारी मृदुल, दिनेश लाल यादव निरहुआ , विनय आनद, पवन सिंह आदि स्थाई रूप से मुंबई में रहते हैं। कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है की भोजपुरी भले ही बिहार उत्तरप्रदेश की भाषा है, लेकिन मुंबई भोजपुरी फ़िल्म जगत का केन्द्र विन्दु है। भोजपुरी फिल्मो के विकास में मायानगरी मुंबई का अहम् योगदान है। भोजपुरी इंडस्ट्रीज का पतन तीन बार हो चुका है, और इसकी वजह थी मुंबई के प्रति निर्माता निर्देशक की बेरूखी। इस बार लगातार पॉँच साल से जिस तरह भोजपुरी फ़िल्म जगत पल्लवित पुष्पित हो रही है उसका कारण इस इंडस्ट्रीज का आधार मुंबई में ही होना है। इस तरह हम कह सकते हैं की बिहार उत्तरप्रदेश अगर खेत है तो मुंबई बीज।
प्रस्तुति - उदय भगत

सोमवार, अगस्त 10, 2009

जैकी श्रोफ रविकिशन की बलिदान



भोजपुरी फिल्मो के महानायक रवि किशन और हिन्दी फिल्मो के जग्गू दादा यानि जैकी श्रोफ जल्द ही एक साथ दिखेंगे भोजपुरी फ़िल्म बलिदान में। इस फ़िल्म का भव्य मुहूर्त मुंबई के साउंड सिटी स्टूडियो में संपन्न हुआ। निर्माता विश्वनाथ शेट्टी और निर्देशक के.डी.की इस फ़िल्म में अभिनेत्री रिंकू घोष कोरियोग्राफर राजीव दिनकर अनिल यादव और नवोदित अम्बिका मुख्य किरदार में हैं। मुहूर्त का नारियल रवि किशन ने तोडा । गायिका कल्पना ने फ़िल्म का पहला गाना गाकर फ़िल्म का विधिवत रूप से शुभारंभ किया। इस मौके पर भोजपुरी फ़िल्म जगत के तमाम दिग्गज बलिदान की टीम को बधाई देने के लिए मौजूद थे। रविकिशन इस फ़िल्म में दोहरी भूमिका में नज़र आने वाले हैं जबकि राजीव दिनकर रविकिशन के छोटे भाई की भूमिका में हैं। जैकी श्रोफ की भूमिका क्या है यह रहस्य बरकरार है, वैसे जैकी श्रोफ एक सशक्त भूमिका में हैं और उनका एक अलग अंदाज़ बलिदान में देखने को मिलेगा। फ़िल्म की कथा पटकथा लिखी है मसूद पटेल ने । बकौल रविकिशन फ़िल्म की कहानी काफी दमदार है इसीलिए जब निर्देशक के.डी.ने उन्हें कहानी सुनाई तो तत्काल हाँ कर दी । उल्लेखनीय है की के.डी. ने भोजपुरी फ़िल्म जगत को निरहुआ रिक्शा वाला, श्रीमान ड्राइवर बाबू , मुन्ना बजरंगी, जैसी सुपर हिट फिल्मे दी है। उनकी एक और फ़िल्म कबहू छूटे ना ई साथ भी प्रदर्शन के लिए तैयार है।